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विश्वास का भारीपन अविश्वसनीय

Sudha Chaudhary 15 Jun 2023 कविताएँ अन्य 7650 0 Hindi :: हिंदी

विश्वास का भारीपन
अविश्वसनीय हो रहा है।
स्वप्न की मृदु धरा पर
जागरण हो रहा है।

मेरी कृति की कल्पना से
विशालकाय तुम,
पर तुम्हारे आचरण से,
सब व्यर्थ प्राय हो रहा है।

तुम धूल की छाया बने,
फूल की थीं उम्र कम ।
संसार ओढ़े चांदनी,
जिसमें था बस तम ही तम।

क्या लिखा था कर्म का
लेखा तुम्हारे रूप में।
जानने के ही लिए 
बैठे रहे इस धूप में।

सुधा चौधरी
बस्ती

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