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सार्वजनिक-स्थलों पर कब्जा

virendra kumar dewangan 30 Mar 2023 आलेख दुःखद sameless 35241 0 Hindi :: हिंदी

सार्वजनिक-स्थलों पर कब्जा
सुप्रीमकोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ ने एक अधिवक्ता द्वारा दायर याचिका पर वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए अहम फैसला सुनाते हुए कहा है कि विरोध प्रदर्शन के अधिकार और अन्य लोगों के आने-जाने जैसे अधिकारों के बीच संतुलन बनाना होगा। 
लेकिन, कर्तव्यों को लेकर जवाबदेही भी तय है। लोकतंत्र व असहमति साथ-साथ चलते हैं। विरोध-प्रदर्शन निश्चित स्थान पर होना चाहिए। 
शाहीन बाग खाली कराने के लिए दिल्ली पुलिस को कार्रवाई करनी चाहिए थी। प्राधिकारियों को खुद कदम उठाना चाहिए था। 
वे अदालत की आड़ नहीं ले सकते। प्रशासन को बंदूक चलाने के लिए कंधा देना अदालत का काम नहीं है।
ऐसा ही अहम फैसला अभी हाल में शीर्ष कोर्ट ने किसान आंदोलनकारियों के लिए भी दिया है और दिल्ली के चारों बार्डर को आम नागरिकों के लिए खाली करने के लिए कहा है।
यह हैरत की बात है संसद द्वारा पारित तीनों कृषि कानूनों का क्रियान्वयन लंबित कर दिए जाने के बावजूद किसानांे का अड़ियल रवैया कुछ अलग की संकेत कर रहा है। गत गणतंत्र दिवस के अवसर पर जिस तरह की हिंसात्मक गतिविधियों को अंजाम दिया गया है, वह किसी खतरे से कमतर नहीं है।
यहां गौर करनेवाली बात यह भी कि शाहीन बाग के प्रदर्शनकारियों से बातचीत करने के लिए जब कोर्ट ने ही वार्ताकार नियुक्त कर दिया था, तब पुलिस-प्रशासन कैसे कार्रवाई के लिए हौसला बढ़ाता। ऐसा आदेश तो तत्क्षण आना चाहिए था, जब अवैधानिक प्रदर्शन हो रहे थे।
उन्होंने यह भी कहा कि ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आंदोलन के तरीके अपनी लोकतांत्रिक व्यवस्था में नहीं अपनाए जा सकते। सड़कों पर कब्जा कर असुविधा पैदा करने की कानून में इजाजत नहीं। उन्होंने यह दलील नामंजूर की कि विरोध के लिए बड़ी संख्या में लोग जब चाहे, कहीं जुट सकते हैं।
विदित हो कि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में सौ दिन से अधिक समय तक चले शाहीन बाग धरने के दौरान दिल्ली को तब भयावह दंगों की आग में झोंक दिया गया था, जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का भारत भ्रमण हो रहा था। 
इस दंगे के पीछे पापुलर फ्रंट आफ इंडिया के होने के सुराग एसआईटी को मिले और अदालत ने कईयों की सजा मुकर्रर की है। कहा जाता है कि इस संगठन का दफ्तर शाहीन बाग में ही है।
नागरिकता संशोधन कानून, जिसका संबंध अफगानिस्तान, पाकिस्तान व बांग्लादेश के गैरइस्लामियों को भारत में नागरिकता देने से है, उसपर भारत के सौहार्द्रपूर्ण वातावरण को विषाक्त करने का काम जिस बदनीयत से किया गया था, उसकी संपूर्ण परतें तो सघन जांच से सामने आएगी, लेकिन इतना तय है कि धरना व दंगा सोची-समझी साजिश का ही नतीजा था।
अब, यह स्पष्ट हो जाना चाहिए कि देश में कहीं धरना, हड़ताल या धार्मिक क्रियाकलाप सार्वजनिक स्थलों पर कदापि न होने पाए। 
इसको देखना सभी राज्यों के जिलों के पुलिस-प्रशासन का काम है। सुप्रीमकोर्ट के साफ निर्देश के बावजूद, यदि ऐसा होता है, तो पुलिस-प्रशासन को जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए।
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