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लज्जा

Rambriksh Bahadurpuri 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक #Lajja kavita#Lajja per kavita#samajik kavita#Rambriksh kavita#Lajja kavita Rambriksh#rambriksh kavita#Ambedkarnagar poetry#rb poetry#ek samajik kavita#sharm per kavita#Laj sharm per kavita#श्रद्धा की कविता#लज्जा पर कविता#संघर्ष पर कविता कोश#कठिन जीवन पर कविता#मानव जीवन पर कविता#naari Jeevan per kavita 24498 0 Hindi :: हिंदी

नयी नवेली खिली गुलाब सी,
                             मुख पर घूंघट पट डाली। 
हया लिहाज में झुकी खड़ी थी
                             छुई -मुई सी अलबेली  ||
लज्जा नारी की आभूषण,
                             नारी का सम्मान यही |
सोना चांदी हीरा मोती,
                         तन मन का परिधान यही ||
नारी है तो लज्जा है ,
                         लज्जा है तो नारी है |
लाज हया बिन नारी वैसी,
                         ज्यों तलवार दो धारी है ||
लज्जा करती भेद नहीं,
                         पुरुषों में लज्जा आती है |
झुक जाती है आंखें उसकी,
                          जब अगुलियां उठ जाती है ||
आओ जाने लज्जा कैसी,
                          किससे करना लाज शर्म |
क्यों झुक जाता है सिर आंखें ,
                          है कैसा यह मन का मर्म ||
मन की बातें मन ही जाने,
                          लज्जा मन का है स्वभाव |
हया ह्रदय का फूटा अंकुर,
                          शर्म सामाजिक संयम भाव ||
लज्जा कोई न उस ईश्वर से!
                           देख रहा जो सुबहो शाम |
न कोई पर्दा हया शर्म का,
                             कुकर्म पाप हो रहा तमाम ||
सबमें बैठा देख रहा वो,
                            छिप न सकता कहीं कोई|
फिर क्यों घूंघट,पर्दा कैसा,
                            है एक पिता संतान सभी ||
लज्जा है तो पाप करो न,
                           अधर्म असत्य का त्याग करो |
जिस कार्य हेतु है जन्म हुआ़,
                            कर कर्म जन कल्याण करो ||                                           
     
                                

                                रचनाकार-रामबृक्ष, अम्बेडकरनगर                      
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