DIGVIJAY NATH DUBEY 24 May 2023 कविताएँ देश-प्रेम #कविता#दिग्दर्शन 10544 0 Hindi :: हिंदी
भीड़ पड़ी है जग में अतिचर भाषाओं की झुंड पड़ी है हमको बस जो सूझ रही है प्रेम की भाषा हिंदी ही है जो जोड़ती गंगा यमुना कश्मीर या कन्याकुमारी संस्कृति की इक छाप लिए उत्तर हिम या पश्चिम अरावली भ्राति मित्र का भाव जगाकर जो हर वर्ग का मिलन कराए वह मीठी वाणी अति विह्वल जो कवियों के कंठ पे छाए चलचित्रों के पर्दे हों या हो नाटक के दृश्य मनोरम हर साहित्य की महिमा है और हर ग्रंथों की भाषा कोमल जो जोड़े हर धर्म को इक में जाति पति को बस धिक्कारे जो मानव के हित के खातिर प्रेम ही प्रेम अमृत बरसाए वही है अपनी देव विलौकिक प्रेम की हिंदी भाषा है । हां कुछ भटक गए थे दो पल पश्चिम के अंग्रेजी सुर में नहीं मिला आनंद अमरपथ जो है हिंदी भाषा में प्रण लेता हु एक दिन सब में प्रेम का भाव जगा ही दूंगा सबके होठों पर इक सुर में हिंदी भाषा ला ही दूंगा ।। दिग्विजय (दिग्दर्शन)!