कविता केशव 30 Mar 2023 कविताएँ प्यार-महोब्बत गांव की गलियां व पांव की पैजनिया 71820 0 Hindi :: हिंदी
वो मेरे गांव की गलियां...... वो खेतों की कच्ची पगडंडियां! देखकर मदमस्त नाचते मोर... थिरक उठती थी पांव की पैजनिया। वो मस्त हवाओं की बेला सुहानी... कुछ कानों में कह जाती थी दिवानी ! वो छन-छन करके बजती थीं..... जब भरने जाती थी, कूंए से पानी!! फागुन के महिने में वो... मस्ती में रंग जाती थी ! छनक -छनक धून प्यार की बजाकर.... सबको अपने संग नचाती थी। छुटा गांव और टूट गई सब पगडंडियां! खत्म हो गए कूंए सब,फीकी पड़ गई... फागुन की सब रंग रंगिया। शहरों में बस गए हैं वो पांव अब.... जो ना थिरकते हैं और ना ही बजती है पैजनिया।। कविता केशव