Rameez Raja 06 Mar 2024 कविताएँ समाजिक महिला, करूँ तुझे मैं नमन 4677 0 Hindi :: हिंदी
महिला, नारी, स्त्री, औरत है तेरे नाम अनेक, है तेरे रूप अनेक, कहलाती है तू कभी माँ, कभी पत्नी, कभीबहन,तो कभी बेटी या फिर कभी अच्छी सहेली, लेकिन जानती है तू अपने कर्तव्यों को भली भांति, निभाती है उन्हें जीवन भर सारी । हँसते-हँसते स्वीकार ले तू जन्म-जन्म का बंधन, है तू प्रभु का दिया हुआ सब से अच्छा अनमोल रत्न| ऐसा रत्न पाकर सदा मुसकाती है, हँसती-रोती खूब प्यार लुटाती है, अपनी जिम्मेदारियों का तो क्या कहना, उसे तो तू हँसकर पूरा करे, घर तू संभाले भरपूर, करें न कभी इनकार, फिर भी अपने अस्तित्व से है परे, इसलिए जननी कहलाती है प्रिए | पाला-पोसा, लड़-प्यार से बड़ा किया तूने, लड़ गई अपने लाल के लिए सब के संग रे , कर गई न्योछावर अपना सब कुछ जीवन साथी संग, कदम से कदम मिलाकर साथ चले तू, कभी रूठे तो कभी मनाने पहुँचे तू , है ऐसी अभिलाषा कि सभी के सपनों को सच कर पाए | तेरी है एक सच्चाई लेकिन, कभी न बताए किसी को भी पल भर, जिस घर में जन्म लिया तूने, खेल-कूद कर अपना बचपन बिताया, भाई-बहन के संग खेल-खेल कर बड़ी हुई, माँ-बाप का प्यार,स्नेह पाया, फिर त्याग दिया सब अपना कुछ अपना एक दिन, मात्र पिता के सम्मान के लिए, छोड़ आई सदा के लिए अपने बाबुल का घर सजन, नए अरमान साथ लिए डोली में बैठी पिया संग , बढ़ गई आगे अपने जीवन की नई डगर पर, कर्तव्य और जिम्मेदारियाँ साथ लिए बस आगे बढ़ती गई | हे स्त्री ! तेरे इतने रूप, तेरे इतने रंग, न कभी रुकती, न कभी ठहरती, बस जीवन में सदा आगे बढ़ती जाती । तेरे इतने गुण देख कर मैं तुझे क्या कहूँ ? नतमस्तक होकर जय अंबे माता कहूँ | है तू इस संसार की सर्वश्रेष्ठ रचना, तेरे ही आलोक से भर जाए हर एक का सपना | हे स्त्री ! नमन करूँ तुझे मैं हर पल, इसीलिए तू कहलाती सर्वगुण संपन्न सर्वगुण संपन्न, है हमेशा तू प्रतिपल ||