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त्याग का रहस्य और त्याग का महत्व

Karan Singh 08 Apr 2023 कविताएँ धार्मिक करण सिंह/*प्रेरक कहानी* *त्याग का रहस्य* 💐प्रस्तुतकर्ता-सपनों का सौदागर.....करण सिंह💐/त्याग का महत्व/भक्ति/भक्त रविदास/भारत भूमि/धर्म/महाबहार्ट/महाभारत/जय श्री राम/ 8794 0 Hindi :: हिंदी

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*प्रेरक कहानी*
*त्याग का रहस्य*
💐प्रस्तुतकर्ता-सपनों का सौदागर.....करण सिंह💐
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*एक बार महर्षि नारद ज्ञान का प्रचार करते हुए किसी सघन बन में जा पहुँचे। वहाँ उन्होंने एक बहुत बड़ा घनी छाया वाला सेमर का वृक्ष देखा और उसकी छाया में विश्राम करने के लिए ठहर गये।*

*नारदजी को उसकी शीतल छाया में आराम करके बड़ा आनन्द हुआ, वे उसके वैभव की भूरि भूरि प्रशंसा करने लगे।*

*उन्होंने उससे पूछा कि.. “वृक्ष राज तुम्हारा इतना बड़ा वैभव किस प्रकार सुस्थिर रहता है? पवन तुम्हें गिराता क्यों नहीं?”* 

*सेमर के वृक्ष ने हंसते हुए ऋषि के प्रश्न का उत्तर दिया कि- “भगवान्! बेचारे पवन की कोई सामर्थ्य नहीं कि वह मेरा बाल भी बाँका कर सके। वह मुझे किसी प्रकार गिरा नहीं सकता।”*

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*प्रेरक कहानी*
*त्याग का रहस्य*
💐प्रस्तुतकर्ता-सपनों का सौदागर.....करण सिंह💐
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*नारदजी को लगा कि सेमर का वृक्ष अभिमान के नशे में ऐसे वचन बोल रहा है। उन्हें यह उचित प्रतीत न हुआ और झुँझलाते हुए सुरलोक को चले गये।*

*सुरपुर में जाकर नारदजी ने पवन से कहा..  ‘अमुक वृक्ष अभिमान पूर्वक दर्प वचन बोलता हुआ आपकी निन्दा करता है, सो उसका अभिमान दूर करना चाहिए।‘*

*पवन को अपनी निन्दा करने वाले पर बहुत क्रोध आया और वह उस वृक्ष को उखाड़ फेंकने के लिए बड़े प्रबल प्रवाह के साथ आँधी तूफान की तरह चल दिया।*

*सेमर का वृक्ष बड़ा तपस्वी परोपकारी और ज्ञानी था, उसे भावी संकट की पूर्व सूचना मिल गई। वृक्ष ने अपने बचने का उपाय तुरन्त ही कर लिया। उसने अपने सारे पत्ते झाड़ डाले और ठूंठ की तरह खड़ा हो गया। पवन आया उसने बहुत प्रयत्न किया पर ढूँठ का कुछ भी बिगाड़ न सका। अन्ततः उसे निराश होकर लौट जाना पड़ा।*

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*कुछ दिन पश्चात् नारदजी उस वृक्ष का परिणाम देखने के लिए उसी बन में फिर पहुँचे, पर वहाँ उन्होंने देखा कि वृक्ष ज्यों का त्यों हरा भरा खड़ा है। नारदजी को इस पर बड़ा आश्चर्य हुआ।*

*उन्होंने सेमर से पूछा- “पवन ने सारी शक्ति के साथ तुम्हें उखाड़ने की चेष्टा की थी पर तुम तो अभी तक ज्यों के त्यों खड़े हुए हो, इसका क्या रहस्य है?”*

*वृक्ष ने नारदजी को प्रणाम किया और नम्रता पूर्वक निवेदन किया- “ऋषिराज! मेरे पास इतना वैभव है पर मैं इसके मोह में बँधा हुआ नहीं हूँ। संसार की सेवा के लिए इतने पत्तों को धारण किये हुए हूँ, परन्तु जब जरूरत समझता हूँ इस सारे वैभव को बिना किसी हिचकिचाहट के त्याग देता हूँ और ठूँठ बन जाता हूँ। मुझे वैभव का गर्व नहीं था वरन् अपने ठूँठ होने का अभिमान था इसीलिए मैंने पवन की अपेक्षा अपनी सामर्थ्य को अधिक बताया था। आप देख रहे हैं कि उसी निर्लिप्त कर्मयोग के कारण मैं पवन की प्रचंड टक्कर सहता हुआ भी यथा पूर्व खड़ा हुआ हूँ।“*

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*प्रेरक कहानी*
*त्याग का रहस्य*
💐प्रस्तुतकर्ता-सपनों का सौदागर.....करण सिंह💐
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*नारदजी समझ गये कि संसार में वैभव रखना, धनवान होना कोई बुरी बात नहीं है। इससे तो बहुत से शुभ कार्य हो सकते हैं। बुराई तो धन के अभिमान में डूब जाने और उससे मोह करने में है। यदि कोई व्यक्ति धनी होते हुए भी मन से पवित्र रहे तो वह एक प्रकार का साधु ही है। ऐसे जल में कमल की तरह निर्लिप्त रहने वाले कर्मयोगी साधु के लिए घर ही तपोभूमि है।

                       🪷🪷
💐प्रस्तुतकर्ता-सपनों का सौदागर.....करण सिंह💐 
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