संदीप कुमार सिंह 07 Jul 2023 कविताएँ अन्य मेरी यह कविता समाज हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 5214 0 Hindi :: हिंदी
हाल दिल का अपना सनम सुनाएं कैसे, नूर ए तन तुझ में नज़र समाएं कैसे। रात दिन तुम रहती हो पर छाई जैसे, तुम बिना अब दिल शीतल कि सम जिएं कैसे। बात दिल की लब पर आ कर बोले जानू, राह अब यूं बिन तेरे नित निभाएं कैसे। यूं अभी भी दिल देती मुझ को सब परियां, पर मिला है हद से तूं कि रिझाएं कैसे। जिंदगी की अब साथी तुम ही हो प्यारी, अलग दुनिया अब प्रिय सनम बनाएं कैसे। साथ जीना जग नामी हर घर चर्चा है, यार अब धन सब पर सतत उड़ाएं कैसे। प्यार में ही अब जीना हमको है तेरे, ऋण मुझ पर अति है तेरा ही चुकाएं कैसे। जिन्दगी को सुरभित रसिक करी तूं ने ओ। प्यार मेरे तुझको नित्य हसाएं कैसे। प्यार संदीप कि निर्मल लगता है तुझको, चाह कर भी तुमको दिल ठुकराएं कैसे। (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह✍🏼 जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....