Amit kumar 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक 79504 0 Hindi :: हिंदी
बेबस ज़िन्दगी 💐💐💐💐💐💐💐💐 टूट गया सपना मेरा जो मैंने कभी सजाया था अब ना रहा वो घर मेरा जो मैंने कभी बसाया था सब अपने है बोल रहे थे आया समय तो मैंने देखा हाथ उठा कर मुह फेर लिया सबने ह्रदय विदारक मैने खुब निरेखा था इच्छा सबसे अच्छा बनने की बना सही पर कदर न थी समय की बाढ़ बहा दिया शायद कमी थी नाव खेने में अपनो पर कुर्बान होने का ऐसा जनून छाया। था मेरा अपनो ने जब साथ छोड़ा कोसो दूर अकेला पाया था द्रवित हुआ हृदय मेरा अंधेरा अब तो छाने लगा कौन है मेरा कौन गैर है समय का चक्र अब बताने लगा है कलम से-- अमित रंजन मड़ही, गाजीपुर