संदीप कुमार सिंह 25 Jul 2023 कविताएँ राजनितिक मेरी यह कविता देश हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 7834 0 Hindi :: हिंदी
(दोहा छंद) राजनीति में धर्म का,भारी अभी अभाव। लाठी के बल भैंस है,फैली अजब दुराव।। राजनीति में धर्म अब,भारत में है झूठ। कथनी करनी सम नहीं,कस के पकड़े मूठ।। राजनीति में धर्म था,पहले नर में खूब। मिली पहचान देश को,विश्व कहे महबूब।। राजनीति में धर्म हो,होगा तभी कमाल। भारत का परचम तभी,सजकर करे धमाल।। राजनीति में धर्म हो,नेता में हो ज्ञान। मन में रखे विकास का,खुशबू भरकर ध्यान।। राजनीति में धर्म से,रखिए जरा लगाव। तभी हालात हो सही,होगा दूर दुराव।। राजनीति में धर्म जब,नेता के हो साथ। तब चमके अरु देश यह,खुशियाँ होगी हाथ।। राजनीति में धर्म हो,लोगों में हो चाह। नेता जनता जब मिले, विकास की तब राह।। राजनीति में धर्म का,बड़ा भव्य है स्थान। कर्म भाव भी साथ हो, भारत बने महान।। राजनीति में धर्म जब, करता सजग प्रवेश। लहर प्रगति का तब चले, खुशबू मय हो देश।। राजनीति में धर्म हो,सुन्दर जब हो कर्म। भारत के परिवार में, सुरभित हो तब धर्म।। राजनीति में धर्म ने,करते भव्य कमाल। दुनिया चमके आज तब, जन जन करे धमाल।। राजनीति में धर्म तो,जीवन में हो प्यार। फिर तो हर दुख पार हो, देश लगे गुलजार।। राजनीति में धर्म हो,माने सभी विधान। शासन भी जब दृढ़ रहे, साथ रहे विज्ञान।। राजनीति में धर्म जब,आए बदले रूप। बने खुशहाल देश तब,जन जन लगे अनूप।। राजनीति में धर्म हो,आँखों में हो नूर। मनसा जब साफ हो,मिले नहीं मजबूर।। राजनीति में धर्म हो,रखे हृदय में ज्योति। अदभुत दिव्य प्रकाश में, चमके जन सम मोति।। राजनीति में धर्म का,होना अब हो खास। गलत काम तब ही रुके, तभी शांति हो पास।। राजनीति में धर्म हो,लगे जरूरी आज। पावन मय तब काम हो, होगी सबको नाज।। राजनीति में धर्म हो,सबका मिले विचार। झंझट तब सब खत्म हो, होगा मधु व्यवहार।। (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह✍️ जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....