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गुलामी के परिचायकों से मुक्ति का प्रयास-दुरुस्त आए की भांति मोदी सरकार ने

virendra kumar dewangan 13 Aug 2023 आलेख देश-प्रेम Consitutional 5078 0 Hindi :: हिंदी

देर आए दुरुस्त आए की भांति मोदी सरकार ने फिरंगियों के द्वारा बनाए गए तीन कानून, जो दासता की निशानियां हैं, को संशोधित व परिवर्तित करने के लिए जिन तीन विधेयकों को सदन के पटल पर रखा है, उससे अनुमान लगाया जा रहा है कि सदियों से चली आ रही सड़ी-गली पुलिस प्रणाली व न्यायिक प्रणाली में आमूलचूल परिवर्तन होगा।

विधेयकों को सदन के पटल पर रखते हुए केंद्रीय गृहमंत्री द्वारा दावा किया गया है कि अंग्रेजों के द्वारा बनाए गए तीन कानूनों की आत्मा पाश्चात्य थी, जिनका उद्देश्य दंड देना था, लेकिन वर्तमान में प्रस्तावित तीनों कानूनों की आत्मा न्याय दिलाने की है।

इसमें नीर-क्षीर परामर्श मिल सके, इसके लिए तीनों विधेयकों को गृह विभाग से संबंधित संसद की स्थायी समिति को हस्तगत किया गया है। प्रस्तावित मसौदे पर विधि आयोग, बार काउंसिल आफ इंडिया और न्यायविदों का पैनल भी मशविरा करेगा कि संशोधित  विधेयक को प्रभावी बनाने के लिए और कौन से प्रावधान शामिल किए जा सकते हैं।

उम्मीद जताई जा रही है कि जहां पुलिस की लेटलतीफी, टालमटोली और भर्राशाही पर विराम लगेगा, वहीं अदालतों में तारीख-पर-तारीख बढ़ाने की कवायदों पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। नीचे से लेकर ऊंची अदालतों में पेंडिंग तकरीबन 5 करोड़ मुकदमों का त्वरित निराकरण हो सकेगा। 

कारण कि यह दुःखद है कि न्यायिकतंत्र की लचर कार्यप्रणाली की वजह से आमजनों में निराशा व हताशा का वातावरण निर्मित है, जिस पर सुधार करने की नितांत आवश्यकता महसूस की गई है।

विघेयक के कानून बन जाने के बाद प्राथमिकी दर्ज करने के 90 दिनों के भीतर पुलिस को चार्जशीट दाखिल करनी होगी। गर किसी खास हालात में जांच अधूरी रह जाती है, तो अदालतें 90 दिनों का अतिरिक्त वक्त दे सकेंगे, पर यह हरहाल में 180 दिन से अधिक नहीं हो सकेगा। अभी चार्जशीट दाखिल करने में, खासकर रसूखदारों, धनबलियों व बाहुबलियों के मामले में बरसोंबरस लग जाते हैं, जिस पर पूर्णतया विराम लग जाएगा। 

इतना ही नहीं, ट्रायल के दरमियान आरोपित या उसका वकील दो बार से अधिक स्थगन नहीं ले सकेगा। आरोपपत्र दाखिल होने पर पहली सुनवाई के 60 दिनों के भीतर अदालतों को आरोपितों पर आरोप तय करने होंगे। न्यायाधीशों को सुनवाई पूरी होने के 30 दिनों के अंदर-अंदर अपना फैसला सुनाना होगा। इसे अनिश्चितकाल के लिए स्थगित नहीं रखा जा सकेगा। 

इस प्रक्रिया से दशकों तक न्याय का इंतजार खत्म होगा और अधिकतम तीन वर्ष में न्याय मिलेगा। नए विधेयकों के कानून बनने से सरकार का अनुमान है कि इसके सात वर्ष बाद 90 प्रतिशत मामलों का निपटारा हो जाएगा।

यही नहीं, सरकारी अधिकारी की गवाही की स्थिति में मौजूदा तैनात अधिकारी पुराने मामले में गवाही देगा। इसके लिए स्थानांतरित, पदोन्नत या सेवानिवृत्त हो चुके अधिकारियों या कर्मचारियों को अदालतों के चक्कर से मुक्ति मिलेगी।

ये तीन संशोधित विधेयक हैं-1860 में बनी इंडियन पीनल कोड (आइपीसी) की जगह भारतीय न्याय संहिता; 1898 में बनी क्रिमिनल प्रोसिजर कोड (सीआरपीसी) के स्थान पर भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और 1872 में बनी इंडियन एविडेंस एक्ट की जगह भारतीय साक्ष्य अधिनियम।

अब, माब लिंचिंग (उन्मादी भीड़ की हिंसा) और भीड़ के द्वारा चोर को दी गई सजा एक कानून के दायरे में लाया गया है। पहचान छिपाकर (लव जिहाद) या नौकरी, प्रोन्नति दिलाने के झूठे वादे कर कुकर्म करने के लिए कठोर सजा का प्रावधान किया गया है।

चोरी, चोरी की संपत्ति को रखना, शांति भंग, धमकी देने जैसे मामलों का अब समरी ट्रायल होगा और एक ही सुनवाई में जुर्माने या छोटे दंड के साथ इसका निराकरण कर दिया जाएगा।

आजीवन कारावास या मृत्युदंड जैसी सजा वाले गंभीर अपराधियों को छोड़कर, जो विचाराधीन कैदी हैं और जो एक-तिहाई सजा भुगत चुके हैं, उनकी रिहाई सुनिश्चित की जाएगी। इसकी जानकारी जेल अधीक्षक के द्वारा ट्रायल कोर्ट को दी जाएगी।

यही नहीं, चेन, बैग, लैपटाप आदि स्नैचिंग के मामलों में कानूनी प्रावधान किया गया है। दुर्घटना होने पर चोटिल को हॉस्पिटल पहुंचाने की आनाकानी गंभीर अपराध माना जाएगा। भगोड़े अपराधियों के मामले में भी होगा ट्रायल और उनका प्रत्यर्पण किया जाएगा। अदालतें भगोड़े अपराधियों का पक्ष रखने के लिए वकील मुकर्रर करेगी।

यद्यपि राजद्रोह कानून को खत्म करने की बात कही गई है, तथापि देश की एकता, अखंडता व संप्रभुता के विरूद्ध अपराधों के लिए अलग से सजा का प्रावधान किया गया है।

प्रस्तावित विधेयक में खास प्रावधान यह भी कि विधेयक को 50 साल तक बदलने की आवश्यकता न पड़े, इसके लिए इनमें इलेक्ट्रानिक, फोरेंसिक, वीडियो कान्फ्रेंसिंग के साथ-साथ ईमेल या एसएमएस से समन भेजने का पूरा-पूरा प्रावधान किया जा रहा है। 

डिजिटल उपकरणों और उससे मिले दस्तावेजों को साक्ष्य के रूप में कानूनी मान्यता दी गई है। अपराधियों की संपत्तियों को जब्त करने का प्रावधान किया गया है। साथ ही सरकारों को सजायाफ्ता मुजरिम की सजा को कम करने का अधिकार दिया गया है, लेकिन वे किसी कीमत पर सजा को माफ नहीं कर सकेंगे।

इसी तरह संगठित अपराध, महिलाओं व बच्चियों के साथ होनेवाले अपराधों पर भी अंकुश लगाने के लिए विशेष कठोरतम प्रावधान किए जाने की दरकार है, ताकि समाज का कमजोर-से-कमजोर तबका कानून के राज के तहत सुखपूर्वक जीवनयापन कर सके।
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