Sanam kumari Shivani 30 Mar 2023 ग़ज़ल हास्य-व्यंग 89433 0 Hindi :: हिंदी
हमने ताजो तख्त को पलटते देखा है। और पत्थर को खुदा बनते देखा है। जीत मेरी तकदीर की मोहताज नहीं हमने समंदर को बारिश बनते देखा है। बस थोड़े देर अब बुझ जाने दे मुझको में राख सी उरना चाहती हूं मत डाल सुखी लकड़ी मुझ पर में और नहीं दहकना चाहती हूं। कोई किसी की बातों से खेलते हैं। कोई किसी के जज्बातों से खेलते हैं। हम तो नसीब के मारे हे जनाब लोग हमारे हालातो से खेलते हैं। by -- नाम सनम कुमारी शिवानी