संदीप कुमार सिंह 01 May 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाजिक हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 5976 0 Hindi :: हिंदी
अरे इस जमाने का क्या कहना? चेहरों पर चेहरें हैं, सच्चाई अभी भी घोड़ अंधेरे में ही है। अजब तेरी फितरत, गजब तेरी रहनुमा है। बोलना कुछ है, करना कुछ और है। सभ्य और भद्र लिबास में, चारों तरफ आदम खोड़ हैं। तूं डरता रहा, मूर्खता तूं करता रहा, इन्सान समझकर, तूं शैतानों पर विश्वास करता रहा। कुछ चंद लोगों के मुट्ठी में है खजाना, और तूं समता का भावना समझता रहा। तूं जिसको अपना शान समझता रहा, असल में वह तेरा, एक खोखला भ्रम था। यहां तो इंसान के खाल में, गीदड़ों की एक झूठी शान है। तूं और मैं, झूठी शान में इतराता रहा। देवलोक से भूलोक तक की, हस्ती हुई सच्चाई, इतिहास के सुनहरे पन्नों में, लिपि बद्घ है। इसमें_उसमें मत उलझो, समझो, परखो और नेक इरादों का, प्रकृति के साथ, प्रगति का जहां निर्माण होने दो। (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह✍🏼 जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....