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यूँ करना- कभी सोचता हूँ चलते चलते मैदान मैं

Bholenath sharma 10 Jan 2024 कविताएँ समाजिक यूँ करना 2937 0 Hindi :: हिंदी

कभी सोचता हूँ बैठा दालान मै ,            कभी सोचता हूँ चलते - चलते मैदान मैं ।    जीवन मैं श्रम कितना करना होगा  ,          जिनता अच्छा जीवन जीना होगा ।               जीवन के नव पद्धति पर ,                       बाधाओं से मत जाना डर ।                        अविरल चलते रहना पथ पर ,                सतत चेष्टाओ से हो उदगार ।                  सत्य संकल्प को धारण करके ,              स्मारक हो इस जीवन में कुछ करके ।

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