संदीप कुमार सिंह 05 Oct 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाज हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 7683 0 Hindi :: हिंदी
#विधा:_दोहा छंद #"सृजन समीक्षार्थ प्रस्तुत" ऐसा कैसे हो गया,उनको यूं तकरार। पर वो तो थे अति भले,नहीं मिला क्यों प्यार।। ऐसा कैसे हो गया,उस पर था विश्वास। पर वो तो बदमाश है,करता रहे विलास।। ऐसा कैसे हो गया,लूट गए परिवार। संशय में ही सब रहे,भूल गए सब प्यार।। ऐसा कैसे हो गया,धर्म घटे हैं आज। लिप्त सभी हैं पाप में,बनकर सब अब बाज।। ऐसा कैसे हो गया,दो नम्बर संसार। मानवता का लोप है,बिकता अब है प्यार।। (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह✍️ जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....