संदीप कुमार सिंह 16 Jun 2023 ग़ज़ल समाजिक अब नहीं मिलता, याराना, मित्र, नजराना, जनाब, पलपल, विश्वास, असली, माल, बाजार, दुकान, कतार, आजकल, उदास, खुशबू, मोहब्बत, युवा, अदब, लैला, पिक्चर, फरेब, जगह, परिश्रम, सफलता, संदीप 6311 0 Hindi :: हिंदी
मित्रों में भी वह याराना अब नहीं मिलता, सच्ची बातों का भी नज़राना अब नहीं मिलता। पलपल रंग बदलते जनाब बहुत हैं, ऐसे में वह विश्वास भला अब नहीं मिलता। बजारों में दुकानों की कतार लगी है, पर असली माल वाला अब नहीं मिलता। फ़िजा भी आजकल उदास रहती है, फिज़ाओं में भी वह बहार भरा अब नहीं मिलता। युवाओं ने जैसे मद का रंग चढ़ा रखा हो, अदब की खुशबू कला अब नहीं मिलता। मुहब्बत करने वाली लैला बहुत हैं, पर इन लैलाओं में वफ़ा अब नहीं मिलता। पिक्चर तो अभी भी बहुत बनते हैं, पर पिक्चरों में वह मज़ा अब नहीं मिलता। फरेब करने वाले जगह_जगह हैं, ज्यादा ईमान वाला अब नहीं मिलता। परिश्रम में संदीप बहुत ही सकून और खुशी है, परिश्रमी को असफलता अब नहीं मिलता। (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह ✍🏼 जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा) बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....