Samar Singh 07 May 2023 कविताएँ दुःखद जब किसी की याद में आपको नींद न आये, बस रोने को जी चाहे और उन्हें इस बात की जरा भी खबर न हो। 5307 0 Hindi :: हिंदी
आज भी काँप जाता हूँ, देखकर वह भयावह चेहरा। जो दे गया जिन्दगी भर के लिए, एक न मिटने वाला जख्म गहरा। उस झंझावत में न सोया, खून का घूँट पीकर रोया। आँखों से आँसू नहीं थे उतरे, ये मेरे खून के थे कतरे। किस तरह पहली रात बीती, जैसे मैंने जिंदगी के बदले मौत जीती। यह तूफान का मंजर था, मेरे खून से रंगा खंजर था। कत्ले -आम का ऐलान था, मेरे स्वाभिमान का अपमान था। जिसका कभी नहीं किया था सौदा, आज उसी के लिए गया था रौंदा। मुझे आज पहली बार, लग रही थी जिन्दगी बेकार। हाथ रहते हुए भी, लगा कट गए हैं, गम इतना था, लगा दिमाग फट गए हैं। बड़ी हसरत से आसमाँ को देखता, कि आयेगा कोई फरिश्ता,। बचा ले मेरे बिखरते हुए, अपनों का प्यारा रिश्ता। हर रात सोने की एक नाकाम कोशिश, नींद चली गयी थी किसी वीराने में। दौड़ रहा था मंदिर, मस्जिद, चर्च तब भी लग रहा था, सड़ रहा हूँ जेलखाने में। जी चाहता था कि जी भर के रोऊँ, जिन्दगी में अब क्या पाऊँ, क्या खोऊँ। सोने के लिए क्या जहर पीकर सोऊँ, फिर सोचा मैं भी सबके लिए काँटे बोऊँ। कभी यहाँ तो कभी वहाँ, जिन्दगी से थक गया। मैं तो चलते- चलते गम से चूर था, गम से पक गया। क्यों नींद गायब थी, एक बड़ा रहस्य है। हर सवालों का जवाब नहीं, यह कहानी अदृश्य है। आज तीन रातें बीत गई, मेरी बदकिस्मती जीत गई। मेरी हर सोच मूर्ख हो गई, आँखें बुझी सूर्ख हो गई। न खाने की भूख, न सोने की जिद्द। एक बहाने का दुःख, गायब सारी नींद।। हर जगह पतझड़ सी, उम्मीदों के पत्ते बिखर रहे। हर जख्म हरे हो रहे, धुल- धुल कर निखर रहे। सारे दरख़्त खड़े हैं, परिंदे गुमसुम पड़े हैं। न कोयल की कूँक है, दिखती हर जगह बंदूक है। ये वहीं रास्ता, जिससे मेरा वास्ता। बिताया जहाँ बचपन, इनसे भी हो गयी अनबन। । नींद क्या होती है, मुझसे पूछो, करवट क्या होती है, मुझसे पूछो। आज चार दिन हुआ, सोना नामुमकिन हुआ। एक चमत्कार चाहिए, बदल जाए वो व्यवहार चाहिए। चार दिन तक कहर बरपा, पाँचवें दिन हुई प्रभु की कृपा। दिल में मची थी क्रांति, मन में हुई शांति। ये कैसा है संसार, कि मैं जीत के भी गया हार।। रचनाकार- समर सिंह " समीर G "