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आंगन

Rambriksh Bahadurpuri 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक #Rambriksh kavita #aangan per kavita #aangan kavita Rambriksh Ambedkar Nagar 44813 0 Hindi :: हिंदी

 कविता -आंगन

             बांटों ना आंगन बन्धु! आज 
             तोड़ो ना रिस्तें मधुर आज। 

तुलसी सी मां-ममता महके
घर का कोना कोना गमके
जीवन की ज्योति सदा चमकें
बजता है जिसमें प्रेम साज। 
बांटों ना आंगन बन्धु! आज 

                       जिस आंगन में चलना सीखे
                       रज जिसकी पग माथे खींचे 
                      खुद का बचपन पलते देखे,
                      देता है जिसका स्वर्ग दाज। 
                     बांटों ना आंगन बन्धु! आज।  

जब अपनें कोई आते थे
तब विस्तर यहीं लगाते थे 
अपनी बीती बतलाते थे,
घण्टों घण्टों सब छोड़ काज। 
बांटों ना आंगन बन्धु! आज।  

                      अपनों के संग अपनों के बिन
                      लगता सूना आंगन दिन दिन 
                      अमन शांति सब जाता है छिन 
                      करो ना अशान्ति का आगाज। 
                      बांटों ना आंगन बन्धु! आज।  

घर के चिड़ियों का कलरव धुन
मन होता खुश प्रातः यह सुन
घर कैसा होगा आंगन बिन 
आंगन नही यह घर का नाज। 
बांटों ना आंगन बन्धु! आज।  

                       रवि प्रकाश आंगन में पड़ता
                       आंगन हरा भरा सा लगता
                       लगता जीवन में सुख झड़ता
                        बटता आंगन बटता मिज़ाज। 
                        बांटों ना आंगन बन्धु! आज।  


रचनाकार- रामबृक्ष,अम्बेडकरनगर। 

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