Jyoti yadav 09 Jun 2023 कविताएँ समाजिक जब मुझे मेरे पापा का सहारा मिल गया 6503 0 Hindi :: हिंदी
वक्त की अनमोल कहानी सुनाऊंगी अपनी जुबानी मैं लड़ रही थी वक्त से यह सोचकर की इक दिन वक्त को बदल देंगे और कुछ लोग इसी वक्त हमसे लड़ने लगे शायद यह सोचकर कि कहीं वक्त के साथ हम संभल लेंगे ना जाने क्या थी उनकी हमसे दुश्मनी कोई बुरी आदत तो नहीं थी अपनी पर ना जाने क्यों बेवजह ही कुछ लोग हमसे उलझते थे खुद को पता नहीं कौन सा नबाब समझते थे मैं भी वक्त का इंतजार कर रही थी खामोश थी और गीता का साथ कर रही थी डूब रही थी नौका मेरी मैं नदी पार कर रही थी अंततः मुझे किनारा मिल गया सुनहरा वक्त दोबारा मिल गया जन्नत मेरी हुई खुशियां सारा मिल गया जब मेरे पापा का मुझे सहारा मिल गया