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कैसे कोई बात बिसारे-खुला हुआ है मुंह अवसर में

Sudha Chaudhary 07 Aug 2023 कविताएँ अन्य 7711 0 Hindi :: हिंदी

नयन सरीखे भाव हमारे
गलियों में चुपचाप उतारे
वहीं हथेली सूनी थी जब
जीवन के दिन चार गुज़ारे।
खोल दिए हैं पट को अपने
आज किवाड़ न खोलो तुम
जगती धरती अगर तेरे बिन
अपना कोई साज उतारे।
कितने कष्ट सहे तिल तिल
भूल न तुमको पाए
हंसते रहे सबके चेहरों संग
महफिल में कोई आज विचारे।
टूटे मुक्ता हार पिरोऊं
या जोडूं टूटे कुनबों को
खुला हुआ है मुंह अवसर में
कैसे कोई बात बिसारे।

सुधा चौधरी
बस्ती

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