संदीप कुमार सिंह 03 Jul 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाज हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 5205 0 Hindi :: हिंदी
(दोहा छंद) नित्य सितम से सामना,छूटे सारे नात। अधरों तक ही रह गई,सारे नव जज़्बात।। अधरों तक ही रह गई,मुलाकात की बात। जर्जर काया जो हुई,खुशियाँ सभी अजात।। (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह✍️ जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....