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पता नहीं किस मोड़ पर-मिल जाए भगवान

संदीप कुमार सिंह 03 Jul 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाज हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 6429 0 Hindi :: हिंदी

(दोहा छंद) 
पता नहीं किस मोड़ पर,मिल जाए भगवान।
सभी मनोरथ पूर्ण हों,देंगे शुभ वरदान।।

पता नहीं किस मोड़ पर, हो जाए उद्धार।
इसी आस में मैं रहूं,मन है अभी कुमार।।
(स्वरचित मौलिक)
संदीप कुमार सिंह✍️
जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार

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