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इसने बननी थी द्वारिका

नरेंद्र भाकुनी 21 Feb 2024 आलेख धार्मिक द्वाराहाट, uttrakhand, मंदिरों की नगरी, भारत, 1763 0 Hindi :: हिंदी

क्या कभी आपने ये सोचा कि असली में इस द्वाराहाट ने श्री कृष्ण की द्वारिका बननी थी, लेकिन बनते  -  बनते रह गया ऐसा क्या होगा इस द्वाराहाट में जो कि यह श्री कृष्ण की द्वारिका नहीं बन सकी क्या है इसके पीछे एक कहानी आखिर ये सत्य है  या  जनश्रुतियां।  ""द्वाराहाट के भव्य शिखर पर जन श्रुतियों का जाल है । रत्न देव, गुर्जर देव  मृत्युंजय महाकाल है।"  जब श्री कृष्ण ने कई बार जरासंध को हराया श्री कृष्णा और बलराम ने जरासंध और उसके सैनिकों को  सत्रह बार मथुरा से खदेड़ दिया ,लेकिन जरासंध ने युद्ध करना नहीं छोड़ा जितनी बार भी वह सेना लाता कृष्ण भगवान इतनी बार उसे हरा कर भेज देते। क्योंकि भगवान श्री कृष्ण के पास कई अश्वनी सेना थी जो स्वयं मायापति हो उसे कौन हरा सकता है  लेकिन जरासंध ने श्री कृष्ण को हराने के लिए कई प्रयत्न किए पर कुछ भी नहीं कर सका श्री कृष्ण उसे तो हरा देते लेकिन इस युद्ध में बार-बार प्रजा को दुख उठाना पड़ता था। भगवान श्री कृष्ण को एक नया राज्य चाहिए था सो उन्होंने भगवान विश्वकर्मा से आग्रह किया कि आप एक हमारे लिए अच्छी नगरी का चित्रण करें।  विश्वकर्मा ने कहां कि आपके राज्य के चारो और समुद्र होना चाहिए और साथ  _साथ सात नदियों का जल होना चाहिए।  "" हे नाथ प्रभु मैं ढूंढ रहा सात तरंगिणी साथ वहे। मध्य भाग में सुंदर नगरी चारों तरफ से सागर रहें।  भगवान श्री कृष्ण ने देवताओं से कहा कि आप अपने किसी देवदूत को पता लगाने को कहे और सात नदियों को आज्ञा दें की आप उत्तर दिशा में बहे, ऐसा कहने पर देवताओं के आग्रह पर एक देवदूत को भेजा और कहा कि आप एक सुंदर जगह देखें। जब देवदूत उस सुंदर स्थान पर गया तो वह वहां खो गया वह इतना सुंदर स्थान था कि उस रमणीय स्थान मैं वह फल खाने लगा और वहां के सुंदर फूलों को देख कर भावविभोर हो गया।  ""इस सुंदर जैसे परदेस में भाव विभोर हो गए। ना जाने कहीं से यहां लाया नहीं फिर भी इसके और हो गए।""  आखिर उस समय यह प्रदेश अति सुंदर रहा होगा कि एक देवदूत भी यहां खो सा गया।  द्वाराहाट के मँदिर तट पर द्वार अनोखा बताओ| एक नाम भी यही कहता है कुमाऊँ का खुजराहो| मै भी कहता तुम भी बोलो ये इतिहास बतलाना| मँदिर नगरी ये कहती है द्वाराहाट मेँ आना|  द्वाराहाट मंदिरों की नगरी के नाम से विख्यात है  जो कि उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में स्थित है , इसे मंदिरों की नगरी भी कहते हैं।  कुछ जनश्रुतियां कहती है कि यही पर द्वारिका  यही बननी थी देवताओं के आग्रह पर जब सारी नदियों ने मिलकर एक समूह बनाकर उस नगर का निर्माण करना था जिसमें सारी नदियां समाहित हो तब बीच में द्वारिका ने बनना था। आखिर क्या रहा होगा यहां।  वहां देवदूत को विलंब हो गया गंगा ने कहा कि मैं वहां चली गई हूं यह सभी ने जो को बता देना वह भी किससे कहा एक सेमल के वृक्ष से लेकिन वह वृक्ष सो गया। जब वह वृक्ष सो गया तो नदी आगे बह गई और नदियां उत्पन्न ना हो सकी देवदूत खो सा गया।,,  फिर बाद में फिर बाद में श्री कृष्ण ने अपना निर्णय बदल दिया और कहां कि अब मेरी द्वारिका गुजरात में बनेगी जोकि समुद्र से घिरा हुआ है और सात नदियों का पानी वहां बहता है।  गंगा से पूछा ,जमुना ने पूछा समस्त सारी नदियों ने पूछा। जाएं कहां हम , क्या हम बनाएं? बताया गंगा ने सबको आकर ये नाद करती सी जा रही है  बनाकर अपना महान द्वारिका वचन ही अपना निभा रही है।  द्वाराहाट को बैराटपट्टम ,लक्ष्मणपुर आदि नामों से पुकारते हैं। जब दसवीं शताब्दी मैं कत्युरों  का साम्राज्य अपने चरमोत्कर्ष पर था तो इन्होंने द्वाराहाट में भी बहुत से मंदिर बनाए , जिनमें से एक रतन देव, गुर्जरदेव , शिव का महामृत्युंजय मंदिर आदि है।  कही आस मिले, कहीं भाव भी है अंजाना एहसास भी है। यह मंदिरों की नगरी है जहां कण-कण में इतिहास भी है।  इन मंदिरों में कहीं पर गज मुखी सिंहमुखी कहीं पर सुंदर कृतिकाओं बाहर मंदिर पर गधी हुई है, मंदिर के ऊपर बड़े-बड़े चक्र बनाए हुए हैं। द्वाराहाट एक सुंदर सा नगर है ये दो शब्दों से मिलकर बना है द्वार +हाट, हाट का अर्थ बाजार या मेला होता है अर्थात मेलो का द्वार, बाजार का द्वार द्वाराहाट कहलाया। उस समय कत्यूरी राज्य की राजकीय भाषा संस्कृत थी और आम चाल की बोली पाली थी।  द्वाराहाट एक भव्य मंदिरों से भरा पड़ा नगर है, इसकी सुंदरता देखने के लिए कई सैलानी यहां पर आते हैं और मंत्रमुग्ध होकर अपनी जगह चले जाते हैं और ले जाते हैं अपने दिल में एक अनुपम छाप।  ""हवा से पूछा जाकर के मैंने कहां से आए, क्या कर रहे हो? उसी हवा ने बताया मुझको_ सुगंध पुष्पों से ला रहे हैं बिखरती जाए पुष्पों की चादर हम आ रहे हैं, हम आ रहे हैं।  जाकर घटाओं से मैंने पूछा_ चमक रही है क्यों दामिनी सी? उन्हीं घटाओं ने राग छेड़ा, रिमझिम से सावन बरस रहे हैं। शुष्क हुई थी धरती तो कब से “तरस रही थी, तरस रही थी।  हमारी धरती हमें यह कहती हम हैं धरोहर ,तुम हो सरोवर। उन्हीं सरोवर में जाकर देखो सुंदर से पत्तों से मिल रहे हैं। जोड़ा कमल को कलियों ने सारा “हम खिल रहे हैं हम खिल रहे हैं”  द्वाराहाट में  बिखोती का मेला भी  लगता है यहां बड़े दूर-दूर से लोग देखने के लिए आते हैं, इसकी भव्यता व्यापक है जोकि मंदिर सभी को पुकारते हैं और कहते हैं तुम कब आओगे तभी तो इसे कुमाऊं का खुजराहो भी कहते हैं ।    ""आज देखलो मानवता  इस रंग को बिखेरलो| कहती यहाँ की सुन्दरता इस जहाँ को समेटलो| ये भरतजन्म् की भूमि है देवोँ का जो साज सना| हर मानवता जहाँ पूजित है ये भारत का इतिहास बना|""  आज हम कई _कई जगह घूमने जाते हैं अच्छे से अच्छे पर्यटक स्थल वहां की सुंदरता हमको मोह लेती है लेकिन द्वाराहाट के मंदिरों में आकर जो एक बार देख ले वो व्यक्ति सदैव आता है और इसकी प्रशंसा कर जाता तो है लेकिन कामना रह जाती है यहां आने की। 
  - नरेंद्र  सिंह भाकुनी ,एम. ए. हिंदी, एम. ए इतिहास, बी. एड

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