Sudha Chaudhary 25 Jun 2023 कविताएँ अन्य 5533 0 Hindi :: हिंदी
क्यों झांक रहा मन मेरा? पथ में इतने कांटे थे मन में जितनी बातें सहज और सम्पूर्ण भाव से आंक रहा मन मेरा। बिजली के उर में तड़पने मानें क्यों मेरा दर्पण यथार्थ नहीं था सम्भव असम्भव मांग रहा मन मेरा। दुनिया की बातें मीठी मेरी क्यों लगती कड़वी सच में मैं मूक नहीं हूं जो साज रहा न मेरा। जिसकी चाहत पर आंखें बिन बात सजल हो जाती उसकी करुणा पर आज क्यों अधिकार रहा न मेरा? क्यों झांक रहा मन मेरा? सुधा चौधरी बस्ती