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क्यों करते हैं लोग आत्महत्या-इंसानों का अपने जीवन को यूं समाप्त कर लेना

virendra kumar dewangan 26 Jul 2023 आलेख समाजिक AatmaHatya 6815 0 Hindi :: हिंदी

एशिया के सबसे धनी देशों में-से एक जापान खुदकुशी की राजधानी कहा जाता है। जहां अक्टूबर 2020 में एक महीने में 2153 लोगों ने आत्महत्याएं की, जबकि कोरोनाकाल में दस महीने में 2087 लोगों ने जानें गवाईं।

	जापान में प्रति 1 लाख की आबादी पर आत्महत्या के कारण सालाना जान गंवाने के 19 मामले सामने आए हैं। यह स्थिति तब है, जब जापान की अर्थव्यवस्था पर कोरोना महामारी का असर कई विकसित देशों की अर्थव्यवस्था की तुलना में कम है। कोरोना के कारण वहां आत्महत्याओं का प्रतिशत एकाएक बढ़ गया है।

	जापान में आत्महत्या के ज्यादा मामलों के पीछे एकाकीपन, तनात, डिप्रेशन, काम के ज्यादा घंटे, मानसिक बीमारियों के प्रति समाज की नकारात्मक अवधारणा, एकाकी परिवार, बेरोजगारी को माना जाता है।
 
जापान उन गिने-चुने देशों में शुमार है, जहां आत्महत्या के आंकड़े नियमित रूप से सार्वजनिक किए जाते हैं। जापान की सरकारें इसकी रोकथाम के लिए बजट में करोड़ों रुपए का प्रावधान करती है।

छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में दीपावली के दरमियान एक महिला जज के द्वारा पंखे में साड़ी से लटककर आत्महत्या कर ली गई, वहीं राजनांदगांव में एक व्यवसायी बाप-बेटे ने कारोबार में घाटे को असहनीय समझकर खुदकुशी का रास्ता चुन लिया।

	उधर महज 34 साल की उम्र में उभरते हुए फिल्मी सितारे सुशांत सिंह राजपूत ने अपने ही घर में कथित तौर आत्महत्या कर लिया। हालांकि यह हाईप्रोफाइल आत्महत्या अपनेआप में कई सवाल खड़े करती है, जिसकी तह तक जाना अभी बाकी है।
 
कारण, जो अभिनेता कामयाबी की बुलंदियों को छूने के लिए चल पड़ा था और जिसकी कई फिल्में हिट हो गई थी, उस उदीयमान अदाकार का यूं आत्मघात से अस्त हो जाना, किसी के गले नहीं उतर रहा है।

	यू ंतो देश में आत्महत्याएं रोजाना होती हैं। वह भी सैकड़ों की तादाद में। कई दसवीं-बारहवीं फेल हो जाने से, कई पीएससी एवं अन्य प्रतियोगिता परीक्षा में चयनित न होने से, कई बिजनेस में फेल होने से, कई नौकरी खोने से, कई कामधाम में आनेवाली परेशानियों से, कई प्रेम में विफल होने पर, कई कोरोना टेस्ट निगेटिव आने पर पाजिटिव आने के भय से, कइयों का टेस्ट पाजिटिव आने पर खुदकुशी कर बैठते हैं।
 
किसान फसल का उचित दाम न मिलने से, कर्ज में डूब जाने से, कई दंपती पारिवारिक कलह से, कई प्रेम में असफल हो जाने से, कई नेता चुनाव में हार जाने से तथा कई सिपाही जंगल की नौकरी से उबने से, कई बाढ़-भूकंप-तूफान और अकाल में तबाह हो जाने से खुदकुशी कर अपनी जीवनलीला समाप्त कर लेते हैं। ऐसी घटनाएं देश में रोज-ब-रोज होती रहती है।

	इसमें ज्यादातर वे परेशानजदा शख्स होते हैं, जो पढ़ाई, कारोबार, रोजगार, पेशा या किसानी, बीमारी-महामारी, इश्क-मोहब्बत की असफलता व हताशा में डूबकर आत्महत्या करते हैं। इसके पीछे की वजह पारिवारिक व आर्थिक होती है, जिसको सुलझाना इनके बूते से बाहर हो जाता है; इसलिए लोग खुदकुशी की राह पर चल पड़ते हैं।

	इंसानों का अपने जीवन को यूं समाप्त कर लेना, उनके लिए किसी सदमे से कम नहीं होता, जिनका जीवन उनसे जुड़ा हुआ रहता है। वे रोते हैं, कलपते हैं, बिलखते हैं और बाद में पछतावा करते हैं कि हमने समय रहते उनकी मानसिक दशा को भांप क्यों नहीं लिया?

	सवाल यह कि जिस जीवन को हमने जन्म दिया नहीं, उसको समाप्त करने का अधिकार हमें किसने दिया? ऐसा करना तो उन लोगों के साथ सरासर दगा है, जो उनके आश्रित हैं, उनसे प्यार करते हैं और उनके दीर्धायु जीवन की कामना करते हैं।

	अच्छा होता कि लोग आत्मघात का रास्ता त्यागकर समस्याओं को सुलझाने का रास्ता तलाशते, तो आत्महत्याओं की दर में कमी आ सकती है। 

इसीलिए कहा जाता है कि आत्महत्या तो कोरी कायरता है, इसका विचार लाना भी मूर्खता और पागलपन है। इसलिए ऐसे विचारों से दूर ही रहना चाहिए। यही मानव के लिए श्रेयस्कर है।

यह जानते हुए भी कि आत्महत्या किसी समस्या का समाधान नहीं है, यह तो केवल उस समस्या से मुक्ति पाने, सदा के लिए निजाद पाने का मुगालता और पलायनवाद है, जिससे ग्रसित होकर कोई आत्महंता बनता है। 

दीगर शब्दों में इसे कायरता भी कहा जा सकता है। ऐसा कायराना कदम वही उठाता है, जो समस्या का सामना करने की मानसिक ताकत खो बैठता है। सच्चाई यह कि खुदकुशी अपने जीवन और अपने स्नेहीजनों व आत्मीयजनों के साथ धोखा है।
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