मारूफ आलम 30 Mar 2023 ग़ज़ल अन्य # maroof#gajal#shayari#poetry hindi 50380 0 Hindi :: हिंदी
बेनूरी है अब नजारों पे क्या लिक्खा जाऐगा इस मौसम मे बहारों पे क्या लिक्खा जाऐगा दरवाजे पर तो मुझको गद्दार लिखा है उन्होंने सोचता हूँ अब दिवारों पे क्या लिक्खा जाऐगा बस्तियों के बच्चे अनपढ़ रह जाएंगे तो कल घर आंगन और द्वारों पे क्या लिक्खा जाऐगा अपने ही अजीज अगर लूटेंगे मारेंगे तो फिर प्यार वफ़ा भाई चारों पे क्या लिक्खा जाऐगा जमीं पे नफरत लिखकर चांद पे बसने वालों ये बताओ चांद तारों पे क्या लिक्खा जाऐगा मारूफ आलम