संदीप कुमार सिंह 30 Oct 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाज हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 5677 0 Hindi :: हिंदी
#विधा:_दोहा छंद #"सृजन समीक्षार्थ प्रस्तुत" जीना है तो सीख ले,जीने के सब ढंग। अनुभव की जब दीप हो,रहे प्रगति तब संग।। जीना है तो सीख ले,जीवन का सिद्धांत। फिर संकट में मत फँसे,कायम रहता कांत।। जीना है तो सीख ले,कैसे करते प्यार। इच्छाओं के योग से,पाएं सब अधिकार।। जीना है तो सीख ले,जीवन है संघर्ष। नित के दृढ़ संघर्ष से,पाएं नव उत्कर्ष।। जीना है तो सीख ले,यहां तरीका खास। सभी तरीके से रहें,हरदम ही उल्लास।। (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह✍️ जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....