संदीप कुमार सिंह 25 Apr 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाजिक हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 5116 0 Hindi :: हिंदी
संस्कार गुण दोष से,दुनिया में हो मान। लोभ क्रोध को त्याग कर,बने भव्य इंसान।। संस्कार गुण दोष से,करे आकलन लोग। फिर वैसा बर्ताव कर,करते जीवन भोग।। संस्कार गुण दोष से,बने प्राण के योग। जिसकी जैसी पात्रता,वैसा ही हो भोग।। संस्कार गुण दोष के,चर्चा करते यार। सभी दोष को दूर कर,करें धरा गुलजार।। संस्कार गुण दोष हद,प्रेम भरा हो ज्ञान। फिर तो नित आनंद है,सुनें धर्म आख्यान।। (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह✍🏼 जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....