Ritin Kumar 09 Jun 2023 आलेख अन्य #रितिन_पुंडीर #इतिहास # सत्य_इतिहास_भाग1 6493 0 Hindi :: हिंदी
यमुना पार कर बन्दा सिंह ने सहारनपुर पर भी हमला किया, सरसावा और चिलकाना अम्बैहटा को रोंदते हुए वो ननौता पहुंचे, ननौता में पहले कभी गुज्जर जाति के लोग रहते थे जिन्हें मुसलमानों ने भगा कर यहाँ इस क्षेत्र पर कब्जा कर लिया था, जब गूजरों ने सुना कि बाबा बन्दा सिंह बहादुर नाम के सिख राजपूत बड़ी सेना लेकर आये हैं, तो उन्होंने ननौता के मुसलमानों से हिसाब चुकता करने के लिए बंदा सिंह जी से गुहार लगाई और बन्दा सिंह जी से कहा कि, "हम गुज्जर भी नानकपंथी हैं, बन्दा सिंह जी ने उनकी फरियाद मानते हुए ननौता पर जोरदार हमला कर इसे तहस नहस कर दिया, सैंकड़ो मुस्लिम मारे गए, तब से ननौता का नाम फूटा शहर पड़ गया.. इसके बाद बंदा सिंह ने बेहट के पीरजादा जो गौकशी के लिए कुख्यात था, उस पर जोरदार हमला कर उसका समूल नष्ट कर दिया, यहाँ के रहने वाले राजपूतो ने बाबा बंदा सिंह बहादुर जी का साथ दिया था.. इसके बाद बंदा सिंह ने रूडकी पर भी अधिकार कर लिया था.. 🔴बन्दा सिंह का जलालाबाद(शामली) पर हमला.. शामली में जलालाबाद नाम पडने से पहले इस क्षेत्र पर राजा मनहर सिंह पुंडीर जी का राज्य था और इसे मनहर खेडा कहा जाता था.. इनका उस समय के मुगल शासक औरंगजेब से शाकुम्भरी देवी की ओर सडक बनवाने को लेकर विवाद हुआ.. इसके बाद औरंगजेब के सेनापति जलालुदीन पठान (इसके पिता मीर हजार खान को मनहार खेडा के पूंडीरों ने पूर्व मे किए हमले मे 14000 की फोज सहित काट दिया था..) ने हमला किया और एक ब्राह्मण रसोईये ने लालच मे आकर राजपूतो के भोजन मे विष मिला दिया था, इस षड्यंत्र में उस समय के कुछ अपनों ने भी मुगलों का साथ दिया था और किले का दरवाजा खोल दिया, जिसके बाद भीषण नरसंहार में सारा राजपरिवार परिवार मारा गया था, सिर्फ एक रानी जो उस समय गर्भवती थी और अपने मायके में थी, उसकी संतान से उनका वंश आगे चला और उसी वंश की संतानें मनहारखेडा रियासत के राजपूत आज 12 गांव मे बस्ते है, जिन्हें मनहारिये बोला जाता है.. भारी, भाबसी, काशीपुर, ऊमाही, ठसका, कल्लरपुर, भनेडा, दखोडी, ऊमरपुर, रोनी, हरनाकी और मंगनपुर गांव इसी वंश के हैं.. इस राज्य पर जलालुदीन ने कब्जा कर इसका नाम जलालाबाद रख दिया था, ये किला आज भी शामली रोड पर जलालाबाद में स्थित है.. जलालाबाद के पठानों के उत्पीडन की शिकायत बाबा बन्दा सिंह जी के पास गई और कुछ दिन बाद ही इस क्षेत्र के पुंडीर राजपूतो की मदद से जलालाबाद पर बन्दा बहादुर ने हमला किया.. राजपूताने(राजस्थान) से चौहान, तोमर, कछवाह, रैकवार राजपूतों की टुकड़ियां भी इनकी मदद को आई थीं, जो बाद में फ़िर यहीं बस गए थे, इसी कारण इस क्षेत्र में लगभग सभी गौत्र मिलते हैं.. बीस दिनों तक सिखों और राजपूतो ने किले का घेरा रखा, उस समय का यह मजबूत किला पूर्व में पुंडीर राजपूतो ने ही बनवाया था, इस किले के पास ही कृष्णा नदी बहती थी.. बाबा बंदा बहादुर जी ने किले पर चढ़ाई के लिए सीढियों का इस्तेमाल किया, रक्तरंजित युद्ध में जलाल खान के भतीजे हजबर खान, पीर खान, जमाल खान और सैंकड़ो गाजी मारे गए.. जलाल खान ने मदद के लिए दिल्ली दरबार में गुहार लगाई, दुर्भाग्य से उसी वक्त जोरदार बारीश शुरू हो गई और कृष्णा नदी में बाढ़ आ गई, वहीं दिल्ली से बहादुर शाह ने दो सेनाएं एक जलालाबाद और दूसरी पंजाब की और भेज दी, पंजाब में बंदा बहादुर की अनुपस्थिति का फायदा उठा कर मुस्लिम फौजदारो ने हिन्दू-सिखों पर भयानक जुल्म शुरू कर दिए.. इतिहासकार खजान सिंह के अनुसार इसी कारण बाबा बंदा बहादुर और उनकी सेना ने वापस पंजाब लौटने के लिए किले का घेरा समाप्त कर दिया और जलालुदीन पठान बच गया.. और तब से लेकर आज तक ये किला पठानों के कब्जे में ही है... हम प्रदेश सरकार और भारत सरकार से अनुरोध करते हैं कि उस समय शत्रु के द्वारा धोखे से कब्जाये गये पुंडीर शासकों के इस एकमात्र जीवंत किले को उन पठानों से लेकर इस किले का अधिग्रहण किया जाए और इस किले को संरक्षित किया जाए... -रितिन पुंडीर ✍️