संदीप कुमार सिंह 25 May 2023 ग़ज़ल समाजिक मेरी यह गज़ल समाज हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 4942 0 Hindi :: हिंदी
#बहर:_2122 #काफिया:_जल/चल #रदीफ:_रहा है। #मिसरा:_दीप सा मन, जल रहा है। ताप सब घर, जल रहा है। कर्म ही तो, फल रहा है। प्रेम ही अब, हल रहा है। नाम अच्छा, चल रहा है। दीप मन में, जल रहा है। दाल सबका, गल रहा है। आज है तो, कल रहा है। राज का बल, दल रहा है। प्यार से सब, पल रहा है। मन खुशी में, पल रहा है। हाथ को वह, मल रहा है। (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह✍🏼 जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा) बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....