Join Us:
20 मई स्पेशल -इंटरनेट पर कविता कहानी और लेख लिखकर पैसे कमाएं - आपके लिए सबसे बढ़िया मौका साहित्य लाइव की वेबसाइट हुई और अधिक बेहतरीन और एडवांस साहित्य लाइव पर किसी भी तकनीकी सहयोग या अन्य समस्याओं के लिए सम्पर्क करें

"ग्रामीण परिवेश अब खोता जा रहा है "

Shreyansh kumar jain 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक 50000 46563 1 5 Hindi :: हिंदी

ग्रामीण परिवेश अब खोता जा रहा है,
इंसान शहरी चकाचौंध में अब जो रमता जा रहा है, 
शुद्धता को छोड़कर अब इंसान जो गांवों से भाग रहा है, 
शहरी अशुद्धता में रहकर इंसान जो मरता जा रहा है।
गाँव के गाँव दिनों-दिन जो खाली हो रहे है,
शहर में आकर इंसान अपने ही पराये हो रहे है,
गाँव के वो खेत खलिहान बंजर होते जा रहे है,
बोये ते जो सपने हमनें वो भी अब शहरी रंग में जो रंगे जा रहे है।
गाँवों की वह हरी-भरी गलियाँ विरान सी हो गयी है,
अपनी विरासत को समेटे अब मायूस सी हो गयी है,
ग्रामीण परिवेश को अब जैसे राहु-केतू का दोष सा लग गया है,
गाँवों में भी इंसान को अब शहरी होने का यह रंग जो चड गया है।
गाँवों की वह मान-मर्यादा, सभ्यता और सम्मान भी कहीं खो सा गया है,
शहर में रहने के बाद अपनत्व का वह भाव पराया सा हो गया है,
क्योंकि अब गाँवों में भी शहरी भूत बनने का ख्वाब जो चड गया है,
इंसान आज अपने गाँवों से दूर किसी शहर में पराया हो गया है।

Comments & Reviews

Shreyansh kumar
Shreyansh kumar good

11 months ago

LikeReply

Post a comment

Login to post a comment!

Related Articles

शक्ति जब मिले इच्छाओं की, जो चाहें सो हांसिल कर कर लें। आवश्यकताएं अनन्त को भी, एक हद तक प्राप्त कर लें। शक्ति जब मिले इच्छाओं की, आसमा read more >>
Join Us: