Mukesh Namdev 02 Oct 2023 शायरी समाजिक जरूरतें,दौलत,गिरेबान,जमीन,ललकारेगें 8636 0 Hindi :: हिंदी
"जरूरतें" "अब हमारी जरूरतें बढ़ गई हैं,इसलिए दौलत की गिरेबान खींचने की ताकत बढ़ गई है,अब शौक ऊंचे-ऊंचे पालेंगे,जमीन पर खड़े होकर आसमान को भी ललकारेगें" #Mukesh Namdev