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सभ्य - स्त्रीया

Sanam kumari Shivani 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक 8900 0 Hindi :: हिंदी

सभ्य महिला चूड़ियो की खनक में
अपनी उदासी का शोर छुपाती है

ढक लेती है अपनी वेरंग दुनियां को
चटक लाल रंग के दरवाजे से

बंधन की इस बेडियो को 
बनाकर पायल के घुंघरू

जड़े में कस के बांध देती है
आजादी की दुनियां को बालों तले

पल्लो माथे पर ओढ़ कर उदासी में भी
मुस्कुराती है जैसे दवि हुई हँसी

खुद का भूख मार कर परोसती हैं
सबको गर्म भोजन

चांद रात के तीसरे पहर तक
उनिंदो आंखो से करती इंतजार
पति के लौट आने का

फिर एक दिन वो सभ्य महिला
झटक कर खोल देती हैं जुड़ा

और अपनी बेटी के घुंघराले बालों में
अटका देती हैं दवी हुई मुस्कुराहट को
बेटी के होंठों पर

ठहाका बना कर देती है
अंधेरे घर में सभ्य महिला की
दबी कुचली ख्वाहिश की ही परवरिश

सभ्य महिला खुल के जी कहा पाती हैं
अपनी मुस्कान में ही अपनी उदासी 
छुपाती है, एसी होती हैं सभ्य महिलाए

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