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रहस्य-दिव्य सुन्दरी जिसे देखते ही खुशी होता था

संदीप कुमार सिंह 18 Nov 2023 कविताएँ प्यार-महोब्बत मेरी यह कविता समाज हित में है।जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभांवित होंगे। 9928 0 Hindi :: हिंदी

उसका आना और जाना मेरे लिए कौतूहक था,
दिव्य सुन्दरी जिसे देखते ही खुशी होता था।

बहुत ही रहस्यमय लग रही थी वो,
पूरी शरीर में एक मादकता भरी थीं।

बातों में गज़ब की नजाकत थीं,
चालों में गज़ब की अदाकत थीं।

नयना देखते कभी थकती ना थीं,
दिल में कोई हलचल सी होती थीं।

लब उसके जैसे मय से भरा हुआ हो,
सारे अपने आप प्यासे हो जाते थे।

उसका आना और जाना मेरे लिए कौतुहक था,
दिमाग की नसें सोच कर शांत हो जाता था।

उसका नाम रखने को मन करता था,
नाम दिया रहस्यमय परी।

कहां से आती कहां को जाती,
कुछ भी तो ख़बर नहीं था मुझे।

एक दिन मैंने बड़े ही अदब से रोका उसे,
परी बोलकर संबोधित किया।

परी ने बहुत ही मनोहर मुस्कान से,
ज़वाब दी क्या बात है?

मैंने पूछा आपका नाम क्या है?
ज़वाब मिला सृष्टि ।

सृष्टि सुनकर संपूर्ण सृष्टि उसमें ही दिखने लगी,
मैं हक्का_बक्का देखे जा रहा था।

फिर वह बोली मेरे विषय में जानना चाहते हो,
मैंने भी बोला हां।

वह एक क़िताब मुझे भेंट दी,
और बोली इसे पढ़ लेना सब जान जाओगे।

फिर वह बड़ी ही फुर्ती से,
आगे को निकल पड़ी।

और उसे मैं जाते हुए देखता ही रहा,
जबतक ना ओझल हुई देखता ही रहा।

फिर क़िताब पर ध्यान दिया,
क़िताब का नाम था सृष्टि श्रृंगार।

अन्दर किताब के सृष्टि संबंधित जानकारियां भरा था,
जितना मैं पढ़ता जाता रहस्य उतना ही गहराता जाता।
(स्वरचित मौलिक)
संदीप कुमार सिंह✍🏼
जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार

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