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अंतरजातीय विवाह पर तुगलकी फरमान

virendra kumar dewangan 14 Jul 2023 आलेख समाजिक Social 7168 0 Hindi :: हिंदी

छग के जांजगीर-चांपा जिले के कहरा जाति के ग्राम करही व किकिरदा के करीब 25 परिवार के तीसरी-चौथी पीढ़ी के लोग आज भी सामाजिक बहिष्कार की सजा काट रहे हैं।

उनका कसूर इतना है कि उनके परिवार का कोई व्यक्ति कभी किसी से अंतरजातीय विवाह कर लिया है।

हालांकि इन परिवारों से अर्थदंड 25-25 हजार रुपया ले लिया गया है और विवाह करनेवालों को छोड़कर उसके परिजनों को समाज में मिला लिया। इसके बावजूद स्वजनों को मृत्युभोज कराने की सजा दी गई है।

यही नहीं, कई लोगों को समाज से इसीलिए बहिष्कृत किया जाता है; क्योंकि उन्होंने अपने प्रकरणों के निराकरण के लिए पुलिस या न्यायालय की शरण ले ली है।

	छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले के धमधा विकासखंड के अकोली ग्राम पंचायत में अंतरजातीय विवाह करनेवालों पर सरपंच द्वारा 50 हजार रुपये का जुर्माना ठोंका जा रहा था।

	इतना ही नहीं, अंतरजातीय विवाह करनेवाले दंपती को पूरे गांव को भोजन कराने और गांव में भीख मांगने का दंड दिया जा रहा था।

	साथ ही, ऐसे विवाहितों का साथ और समर्थन देने वालों पर एक लाख रुपया तथा पंचायत के तुगलकी फरमान का विरोध करनेवालों पर 3 लाख रुपया का जुर्माना लगाया जा रहा था।

	वहीं, अंतरजातीय विवाह करनेवाले दंपती के परिजनों का सामाजिक बहिष्कार किया जा रहा था। उनसे गांव में बोलचाल बंद करवा दिया गया था।

	उपर्युक्त वाकिया एसबीआइ के एक कर्मचारी और अकोली निवासी के साथ तब घटित हुआ, जब उसने 16 दिसंबर 2021 को समीपस्थ ग्राम परसबोर्ड की युवती से आर्यसमाज भिलाई में अतंरजातीय विवाह किया।

	संबंधित के द्वारा एसडीएम धमधा, दुर्ग के एसपी व कलेक्टर को जनदर्शन में शिकायत करने पर तथा समाचारपत्रों में प्रकाशित होने पर मामला तूल पकड़ा और सामने आया।

बावजूद इसके, सरपंच पर तत्काल कार्रवाई नहीं की गई, जो प्रशासन की लचर कार्यशैली को उजागर करता है।

	ऐसा ही जुर्म अकोली के ही एक अन्य युवक के साथ तब किया गया, जब उसने ग्राम विचारपुर भरदा की निवासिनी से रायपुर के बैजनाथ पारा स्थित आर्यसमाज मंदिर में अंतरजातीय विवाह किया।

	युवक के द्वारा सरपंच की शिकायत उच्चाधिकारियों से करने पर अधिकारियों के द्वारा उलटे यही कहा जाता रहा कि गांव का मामला है, गांव में ही निपटाएं।

	आशय यह कि इन्हीं की तरह ग्राम पंचायत में ऐसे कई युवक हैं, जो प्रताड़ना झेल रहे थे।

	अकोली के सरपंच ने अंतरजातीय विवाह करनेवालों से जुर्माना वसूलने के लिए ग्राम सियान समिति का गठन कर रखा था, जिसमें नौ जने थे। समिति के लोग जुर्माना पटाने के लिए दबाव डालते थे, धमकियां देते थे, धौंसधपट दिखाते थे और गालीगलौच करते थे।

	अकोली पंचायत के तुगलकी फरमान का मामला जब प्रदेश के राजनीतिक व प्रशासनिक हलकों में सुर्खियां बटोरने लगा, चर्चा का विषय बना; तब जिला प्रशासन के कान खड़े हुए। वह हरकत में आया।

	 कलेक्टर ने मामले की जांच करने के निर्देश एसडीएम को दिया। एसडीएम ने पुलिस व तहसीलदार को जांच सौंपा।

	जांच रिपोर्ट मिलने पर एसडीएम ने सरपंच सहित संबंधित पक्षों को समझाइश दिया और तुगलकी फरमान वापस लेने के लिए कहा।

	सरपंच ने मामला हाथ से निकलता देखा, तब यह कहकर फरमान आननफानन में वापस ले लिया कि अकोली गांव में अब अंतरजातीय विवाह करने पर किसी पर कोई दंड नहीं लगाया जाएगा; न ही सामाजिक बहिष्कार किया जाएगा। गांव का प्रत्येक व्यक्ति अब स्वतंत्र है।

	इसके उपरांत एक नाटकीय घटनाक्रम में पीड़ित युवक ने 28 मई 2022 की रात धमधा थाने में शिकायत दर्ज कराई कि सरपंच व उसके साथियों ने मीडिया के जरिए गांव की बदनामी कराने का आरोप मढ़ते हुए उससे व उसके माता-पिता के साथ जमकर मारपीट की है।

	वहीं सरपंच ने उलटे युवक के द्वारा मारपीट करने का आरोप लगाकर थाने में शिकायत दर्ज करवाई।

	पुलिस दोनों पक्षों को समझाइश दे कर मसला खत्म करने की कोशिशें की। इधर प्रबुद्धजनों व समाजजनों का आरोप है कि पुलिस मामले में लीपापोती व टालमटोली कर रही है।

	वहीं, अंतरजातीय विवाह करने वाले युवक-युवतियों को संरक्षण देने वाली संस्था एक मानव समाज के प्रदेशाध्यक्ष का कहना है कि एक मानव समाज, राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण में मामले की शिकायत करेगा और पीड़ितों को विधिक सेवा उपलब्ध करवाएगा।

	उनका यह भी कहना है कि अंतरजातीय विवाह करने वाले युवकों से भीख मंगवाना गंभीर मामला है। वे इसकी शिकायत राष्ट्रपति, राज्यपाल व मानवाधिकार आयोग से भी करेंगे और ऐसी दादागीरी करनेवाली पंचायतों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की शिफारिश करेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि अंतरजातीय विवाह करना कोई अपराध नहीं है, बल्कि सामाजिक समरसता व जागरूकता का परिचायक है। 

अकोली के सरपंच समानांतर संविधान बनाकर मनमर्जी चला रहे थे और अंतरजातीय विवाह करनेवाले युवकों का मानसिक एवं सामाजिक उत्पीड़न कर रहे थे। सवाल यह कि जब अंतरजातीय विवाह करना कानूनन अपराध नहीं है, तब उसने किसकी शह पर ऐसा दांडिक जुर्माना लगाना चालू किया था?
 
सरपंच को यदि भारत के विधि-विधानों की जानकारी नहीं थी, तब उसने किसी से सलाह-मशविरा क्यों नही किया? हमारे संविधान ने किसी को ऊंचा-नीचा नहीं माना है। संविधान ने सबको समानता का अधिकार दिया है; बल्कि बालिग युवक-युवती अंतरजातीय विवाह आपसी रजामंदी से करने के लिए आजाद हैं।

इस पर कोई कानूनी रोक नहीं है. तथापि संकीर्ण जातिप्रथा को तोड़ने के लिए इसे आवश्यक माना जाता रहा है। संविधान के अनुसार, न कोई जाति श्रेष्ठ है, न कोई निम्न. ऊंचनीच की भावना सामाजिक कुप्रथा हो सकती है, संवैधानिक नहीं।

दरअसल, जातिप्रथा कठमुल्लों व कट्टरियों के द्वारा रोपा गया एक सामाजिक कुरीति है, जिसे संवैधानिक प्रावधानों से ही तोड़ा और इसकी जड़ता पर प्रहार किया जा सकता है।

इसीलिए, अंतरजातीय विवाह करने वाले युवक-युवती प्रशंसा के पात्र हैं। सरकारें अंतरजातीय विवाह करने वाले युवक-युवतियों को प्रोत्साहित भी करती है। आरक्षण का प्रावधान इसी किस्म का अस्त्र है।

	सरपंच को पंचायत के प्रधान होने के नाते सामाजिक समरसता स्थापित करनेवाले युवक-युवतियों को अंतरजातीय विवाह करने पर प्रोत्साहित और पुरस्कृत करना चाहिए था, लेकिन उसने दंडित करने का विधि विरूद्ध तरीका अपनाया।
 
भारत के संवैधानिक नियमों के तहत निर्वाचित सरपंच के लिए ऐसा दोष अक्षम्य है और सरपंच को पंचायत राज अधिनियम के तहत कठोर दंड दिया जाना चाहिए। ऐसी दंडात्मक कार्रवाई ग्राम पंचायतों के विहित प्राधिकारी होेने के नाते एसडीएम धमधा स्वतः संज्ञान ले कर सकते हैं।

	मामले में ग्राम पंचायत के सचिव की भी जिम्मेदारी बनती थी कि जब ग्राम पंचायत का कोई प्र्र्रस्ताव भारत के संविधान या पंचायत राज अधिनियम के खिलाफ लाया जाता है और बलपूर्वक बहुमत से पास करवाया जाता है, तब वह उस प्रस्ताव में विपरीत टिप्पणी लिख कर पंचायत निरीक्षक या बीडीओ या मुख्य कार्यपालन अधिकारी जनपद पंचायत को लिखित में अवगत करा सकता था।

	इस लिहाज से ग्राम पंचायत अकोली के सचिव को भी पदीय कर्तव्यों की अवहेलना का दोषी माना जाना चाहिए। 

अंतरजातीय विवाह पर राजस्थान में खाप पंचायतों का भी रवैया यही रहता है। इस लिहाज से छग के ग्राम पंचायत अकोली व राजस्थान के खाप पंचायतों में खास अंतर नहीं दिखता।

वहीं एक अन्य मामले में छग के ही दुर्ग जिले के एक गांव का मामला राज्य महिला आयोग के समक्ष विचाराधीन है, जिस में 2010 में अंतरजातीय विवाह करने पर एक दंपती को न केवल गांव व समाज से बहिष्कार किया गया, अपितु उस पर 8100 रुपये का जुर्माना समाज के द्वारा लगाया गया है।

ऊपर से समाज के द्वारा 1.50 लाख रुपया इस जोड़े से इसलिए मांगा जा रहा है, ताकि उसे समाज में मिलाया जा सके।
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