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कविता, घर जा रहे प्रवासी।

राणा प्रताप कुमार 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक 31131 0 Hindi :: हिंदी

घर जा रहे प्रवासी। 
कितने भुखे और प्यासे। 
इतना पैदल चल रहे हो। 
की पाँव में पड़ गये छाले। 
वेग और झोला हाथ मे। 
छोटे बच्चों को लेकर माँ। 
चल रही हैं साथ में। 
निंद ना लागे रात मे।
गला यू ही सुख रहा हैं। 
तपते हुए धुप में। 
बच्चे कितना रो रहे हैं। 
चलते हुए राह मे। 
हमारे ये मजबूरी। 
कैसे कटेगी ये दुरी। 
कौई हम लोग को मदद करे। 
घर जाना है जरूरी। 

यह लेख लाक डाउन के समय का है। 

लेखक-राणा प्रताप
आजमगढ़ उत्तर प्रदेश। 
मो0न0- 7347379048


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