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सुरमा और काजल

SANTOSH KUMAR BARGORIA 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक इस कविता के माध्यम से कवि यह समझाने की चेष्टा कर रहा है की जिस तरह मनुष्य अपने एक ऑख में काजल और एक ऑख में सुरमा नहीं लगाता ठीक इसी तरह यदि किसी व्यक्ति से भूल हो जाए जिसके गुनहगार कोई एक व्यक्ति नही बल्कि दो लोग हो तो कभी भी किसी एक की तरफदारी नही करनी चाहिए जो सजा किसी एक के लिए निर्धारित हो वही दूसरे के लिए भी होना चाहिए । 43449 0 Hindi :: हिंदी

ना लगा एक ऑख में सुरमा, 
और एक ऑख में काजल तू।
गर कसूरवार है दो तो संतोष, 
तो फिर सजा एक को आखिर क्यों।।

क्या बन्द पड़े हैं मुख तुम्हारे , 
किसी के एहसानो तले दबके ।
या फिर नीति ही तुम्हारी संतोष,  
दुर्नीति करने की है ।।

गर नियम कानून और कैदे हो बने, 
तो सब के लिए समान हो फिर।
ना किसी एक को बचाने के ख़ातिर, 
किसी एक पे घात हो फिर ।।

कबतक मोहमाया में फसकर, 
धृतराष्ट्र बने रहोगे संतोष ।
अब तो अपनी चुप्पी तोड़ो, 
ना रखो लब को और खामोश ।।

      🙏 धन्यवाद 🙏

                                                             संतोष कुमार बरगोरिया 
                                                          ---------------------------------
                                                               (साधारण जनमानस) 

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