Sudha Chaudhary 30 Mar 2023 कविताएँ अन्य 83794 0 Hindi :: हिंदी
लिख दिया मान लो कुछ नहीं, स्वप्न छोटा था मगर नींद पूरी नहीं। अपनों के लिए बहुत है यहां, मगर दूसरों के लिए आंख रोती नहीं। वो दीपक हूं जो फूंक से बुझ गई, धुआं उठता रहे येकिस्मत नहीं। मैं तरानो में अपनी उम्र खोजती हूं, इस कलम से बड़ी कोई कातिल नहीं। किसे चाहिए ऐसी दीवारों दर, जी जलता रहे सुकून ही नहीं। छिपाकर हंसी बिन बोले ही रोक लेते, कि हंसी से बड़ी कोई खुशी नहीं। सुधा चौधरी