Samar Singh 05 Jun 2023 कविताएँ हास्य-व्यंग उस समय प्रैक्टिकल की परीक्षा में भी कितना आनंद था, आज सोचता हूँ तो हँसी आती है। रैगिंग भी लेते तो बड़ा डर लगता था। 6075 0 Hindi :: हिंदी
प्रैक्टिकल की चल रही थी परीक्षा, मुझे हो रही थी पानी पीने की इच्छा। चपरासी की ही थी नादानी, कि प्रैक्टिकल रूम में नहीं आ रहा था पानी। चपरासी भुनभुनाया, हम लोगों को कुछ समझ में नहीं आया। आज ही पानी नहीं आना था नल में, पास होंगे कैसे हम प्रैक्टिकल में।। मिक्चर विलयन बनने से रहा, दिमाग ऊपर से नकुआ रहा। गंदा परखनली मुँह चिढ़ा रहा था, मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। सर जी चिल्लाये, पानी बाहर से लाये। मैंने उठाया बीकर, खुश होऊँगा पानी पीकर। बाहर ग्राउंड में आया, मुझे कुछ नजर नहीं आया। कुछ लड़के पानी लाते दिखे, मन ने लड्डू के स्वाद चखे।। पानी से बीकर धोया, मन अचानक रोया। वाइबा आयेगा, पता नहीं क्या गुल खिलायेगा।। पानी पीकर हुआ आश्वस्त, कि मेरा सूर्य हो गया अस्त। सामने से आते दिखे दो मोटे भाई, आते ही पकड़ी मेरी कलाई।। मैं समझा बीकर से पीयेंगे पानी, यार गजब करते हो शैतानी। नल से पीयो पानी भरपेट, प्रैक्टिकल के लिए हो रहा हूँ लेट।। वे दोनों गला फाड़ के चिल्लाये, अपनी गुंडई हाथ मरोड़ के दिखाये। बोले अबे प्रैक्टिकल दास, कहाँ है तेरा निवास। मैं सोचा, अरे भईया, मर गई क्या आपकी मईया। जो रहेंगे मेरे साथ, सही आदत नहीं करने की बात।। मैं रुककर बोला, काँपकर जबान खोला। बताई जब अपने बारे में सब बात, हँसते रहे दोनों साथ- साथ।। वे बोले अच्छा है तेरा नाम, देखना जब हमें करना सलाम। अच्छा जा मिलेंगे कल, कर ले आज प्रैक्टिकल। जब मुझे होश आया, तो कलाई छूटा पाया। प्रैक्टिकल रूम में आया, जैसे यमराज से लड़ के आया।। इधर मिक्चर हो गया नष्ट, दिमाग हो गया भ्रष्ट। लाल की जगह अवक्षेप आया काला, कोई जेब से कलम निकाला। अनायास मुझसे बोला, काली जबान खोला। तेरी " माल " आई है, क्या किस्मत तूने पाई है। अरे यार बदलों अपनी चाल, इसे नहीं कहते है माल। इसे कहते है अवक्षेप, मेरी बात से गया झेंप। मुझे लगा समझाने, फिल्मी हाल सुनाने। वह दिवाना तब बोला, कि मैंने अवक्षेप को एसीटेट में घोला। प्यार क्या है एक चीज, मैंने कहा चुप रहो प्लीज। वह बोला सोडियम हाड्रॉक्साइड एसिड नहीं बेस है, इलेक्ट्रॉन का घूमना इश्क का केश है।। मैं चिल्लाया आखिर में अवक्षेप आया क्यों पीला, मेरा दिमाग हो रहा है गीला। वह मुझे ऊपर से नीचे तक देखता रहा, सांद्र सल्फ्यूरिक एसिड की तरह उबलता रहा। वह मेंढक की तरह बोला टर्र, कि आ गए इक्जमानर। बेचारा पहले से ही गया था पगला, इक्जमानर को देखकर हो गया बावला। वह गुस्से से अपना सर नोंच रहा था, इधर मैं मिक्चर से ट्राईटेशन की सोच रहा था।। रचनाकार - समर सिंह " समीर G "