संदीप कुमार सिंह 05 Oct 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाज हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 9673 0 Hindi :: हिंदी
#विधा:_मुक्तक छंद #"सृजन समीक्षार्थ प्रस्तुत" ऐसा कैसे हो गया,लूट गए परिवार। संशय में ही सब रहे,भूल गए सब प्यार। लिप्त सभी हैं पाप में,बनकर सब अब बाज_ मानवता का लोप है,दो नम्बर संसार।। (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह✍️ जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....