संदीप कुमार सिंह 26 Apr 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाजिक हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 5688 1 5 Hindi :: हिंदी
कुछ फूल कागज के भी बहुत खुशबूदार बनाए जा सकते हैं, इनमें भी रंग हजार भरे जा सकते हैं। मायावी दुनिया में चाल_ढाल लोगों के बदलते रहते हैं, ऐसे में कुछ यादगार भेंट जरुर करना चाहिए। आज भी मेरे ह्रदय में वह खूबसूरत चेहरा वास करती है, जब पहली दफा उसने मुझे कागज़ की गुलाब फूल भेंट की थी। जो त्यों ही सुरक्षित मेरे टेबल पर शोभायमान है, जो मेरी नज़रों को एक तृप्त अहसास से जगमगा देती है। पर गजब हैं कुदरत के करिश्में, अक्सर दुनिया में दिल की क़रीब रहने वाले कहीं खो जाते हैं। ठीक यही हादसा मेरे दिल पर भी गुजरा है, और आज भी वही कागज़ की फूल मुझे तरो_ताज़ा करती है। रात की तन्हाइयों में वह एक परी सी आ ही जाती है, और मैं उसे पकड़ने के लिए दौड़ पड़ता हूं। और वह खूबसूरत बला हस्ती हुई कहीं रात में खो जाती है, लेकिन जादू सा मेरे मन में होता है, उस हसी की खनक सकूं देती है। पर यह सिलसिला चल तो रहा है, लेकिन सोच में पड़ जाता हूं ऐसा कब तलक चलेगा? सोचता हूं आज रात में उसे पकड़ ही लूंगा, पर यह क्या आज भी उसी तरह हस कर गायब हो गईं। परी की देवियों से मैंने एक गुज़ारिश किया है, कि आपकी वह हसपरी मुझे यूं अब न सताए। मुझे अपने दिल की बात बताए, ताकि वह गमकती कागज़ की फूल वापस कर सकूं। संदीप कुमार सिंह✍🏼 जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....