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न रुकना न झुकना-सैलाब बन बढ़ते जाना है

संदीप कुमार सिंह 11 Jun 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाज हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 7291 0 Hindi :: हिंदी

न रुकना है न झुकना है,
सैलाब बन बढ़ते जाना है।
खूनों में रवानगी है, सांसों में हलचल,
हर हाल में चलते चलना है।

नफरत जो आज हर दिल में समाया है,
इस नफरत को मिटाने हम सब प्यार लाया है।
हर किसी से बात यह कहना है,
जीवन को आगे ही आगे ले जाना है।

बिन लक्ष्य जीना तो बेकार है,
अपने लक्ष्य के प्रति काम करना है।
झिलमिल सितारों सा चमकना है,
सारी दुनिया पर छा जाना है।

बस इतना सा ख़्वाब पाला हूं हम सब,
दौलत, शोहरत खूब मिले हम सबको।
गम करना हम सब सिखा नहीं है,
खुशियों से अपना नाता पुराना है।

चट्टानी अपना इरादा है,
हमें कोई भी बाधा रोक न सके।
जीवन को अपने ही छंद में जीना है,
गुलाबों की खुशबू बन महकना है।

हवा जब चाहे वैसी बहती है,
फिर भी सबके दिल में नव आस रहती है।
मौसम का प्रभाव हमें डिगा न सके,
रात का अंधेरा हमें हिला न सके।

हम सब सूर्य का प्रकाश हैं,
छूने को तैयार आकाश हैं।
शाम का प्यार सा दिल में भाव रहता,
कुछ ज़ख्म को भी खुशी से सहता।

सीतम को मुंह तोड़ जवाब देना हमने सिखा है,
अपने आप को हर हालात में ढाला है।
बस इतना सा ख़्वाब है,
सारी दुनिया पर अब छाना है।
(स्वरचित मौलिक)
संदीप कुमार सिंह✍️
जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)
बिहार

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