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बस अब गीत नहीं लिखने हैं -

कवि राजवीर सिकरवार 30 Mar 2023 गीत समाजिक 16541 0 Hindi :: हिंदी

बस अब गीत नहीं लिखने हैं-
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   - एक गीत आपकी समीक्षार्थ-
                -----------------

बस अब गीत नहीं लिखने हैं । 
कागज, कलम और स्याही सब, बन्द पिटारी में रखने हैं = 
बस अब गीत नहीं लिखने हैं । 

1 -

अश्लीली  साहित्य  शहर  में, महँगा हाथों - हाथ बिक गया । 
फिर भी माँग रही जोरों पर, जन मानस का भाव दिख गया । 

गीतों के संकलन सड़क पर, रद्दी भाव लगे बिकने हैं = 
बस अब गीत नहीं लिखने हैं । 

2-

पश्चिम लय पर फूहड़पन के, गीतों का अब चलन हो गया । 
देश भक्ति  के  गीत  मर  गये, अय्याशी  ये वतन हो गया ।

जन-जन के घर दीवारों पर, नंगे चित्र लगे दिखने है = 
बस अब गीत नहीं लिखने हैं । 

3-

बजती धुनें विदेशी जब जब ,प्रेमी युगल मचल जाते हैं । 
देश - राग  की  सरगम छूटी, फूहड़ गीत, गजल गाते हैं । 

टूटी मर्यादाएं सारी , दिखते सभी घडे चिकने हैं = 
बस अब गीत नहीं लिखने हैं । 

4- 
हुई राजभाषा  की  दुर्गति, तार - तार  हो  गई  सभ्यता । 
मृत्युसेज पर स्वाभिमान है, खो बैठी संस्कृति भव्यता । 

इस बेशर्म जमाने में अब, अपने पाँव नहीं टिकने हैं = 
बस अब गीत नहीं लिखने हैं । 

= = = = = = = = = = = = = = = = = = = = = = = = = = = = 
राजवीर सिंह 
सबलगढ़ मुरैना म.प्र

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