संदीप कुमार सिंह 26 Apr 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाजिक हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 7232 0 Hindi :: हिंदी
आशा के दीप से ही तो जिन्दगी जीया जाता है, यूं निराश_हताश होकर तो कुछ फायदा ही नहीं। दुनिया आशा और विश्वास पर टिका हुआ है, नहीं तो फिर मानव तन पाकर भी पशु ही हैं। चाहतों को उड़ान देकर ही मजा लिया जाता है, मंजिल की ललक ही तो सुन्दर नाम छवि देता है। दिन बदलेंगें अपने भी एक दिन अवश्य ही मित्रों, जो हमने मिलकर के कभी सजाए संवारे थे मित्रों। आशा रूपी नौका से नौका विहार करते चलूं, आनन्दों के महासागर में गोता लगाता रहूं। जैसी जिसकी भावना होती है, वैसा ही वह फल भी पाता ही है। गीत प्रेम का शौख से गाता रहूं, मंगल कामना सदा करता रहूं। फूलों सा सुरभित जीवन अपना, सुन्दर सलौने दिल में ढेर सपना। संदीप कुमार सिंह✍🏼 जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....