संदीप कुमार सिंह 19 May 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाज हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 5106 0 Hindi :: हिंदी
तन गोरा है मन काला है, तन गोरा है मन काला है, स्वयं को स्याना समझता है, औरों को मूर्ख समझता है। पर यह कैसी मनोदशा है, जीवन का अर्थ समझे नहीं। शीशा कहीं भी चमकता है, शुभ कर्म कहीं भी फलता है। गलती से पाप कर लिया है, परिणाम से वह अनजान है। जरा देखें दुनिया कुछ सीख, अभी भी वक्त है सम्हल जा। विचारों का फूल सौरभ कर, हरेक चीज से अति प्यार कर। एक वृक्ष स्दृष्य भावना हो, खुदबखुद पर हित होता है। सृष्टि में प्रत्येक वस्तु सदा, आपस में पूरक होता है। बहुत ही मनोरम बंधन है, बंधने पर इसमें मजा है। (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह✍️ जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा) बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....