Saurabh Shukla 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक Google/http://kwsvs.blogspot.com/2022/04/blog-post_23.html 13387 0 Hindi :: हिंदी
बैठा बारव्हीं सीढ़ी पर , भूला अपने आप को था | ना था साथ किसी का , बस दर्द का साथ था | मै बैठा था , जिस सीढ़ी पर | वो इस सफर का , आखिरी पायदान था | उस दर्द भरी सीढ़ी पर अनजान सी चहचहाट आ रही थी | जाने वो नन्ही चिड़िया क्या बता रही थी | अचनाक चमत्कार सा हुआ , वो बैठी हाथो में जब साक्षात्कार हुआ || एक रस्सी कहूँ या डोर जिससे उसने मुझे जकड सा लिया | उसके इसी नादान प्रेम ने, मुझे पकड़ लिया | उसकी चहचहाट मुझे भाने लगी थी | लेकिन उसकी पंखो की उड़ान , उसे मुझसे दूर ले जाने लगी थी | न डर था इस बात का , की वो दूर जा रही है | डर था कि कहीं वो किसी के , जाल में तो नहीं फसती जा रही है | मुझे पता था ,इस दुनिया में सब भोले-भाले लोग ही नहीं बसते | कुछ कुत्ते तो कुछ बाज तो कही गिद्ध भी नजर गड़ाए हसते | जाने क्या हुआ अब उसे घर में पड़ा , दाना ना सुहाता था | क्या हुआ पता नहीं कुछ दिनों से , उसे ऊपर उड़ना जाया भाता था | चाहता तो में भी था , वो आसमा को चीरकर ऊपर जाये | लेकिन कही एक डर भी था , कही वो किसी जाल में न फस जाये |