Join Us:
20 मई स्पेशल -इंटरनेट पर कविता कहानी और लेख लिखकर पैसे कमाएं - आपके लिए सबसे बढ़िया मौका साहित्य लाइव की वेबसाइट हुई और अधिक बेहतरीन और एडवांस साहित्य लाइव पर किसी भी तकनीकी सहयोग या अन्य समस्याओं के लिए सम्पर्क करें

बिगड़ रहा पर्यावरण-भौतिक सुख में लीन

संदीप कुमार सिंह 03 Jul 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाज हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 6604 0 Hindi :: हिंदी

(दोहा छंद)
बिगड़ रहा पर्यावरण, फुर्सत में आवाम।
अपने अपने शौक में, खत्म किए गुलफाम।।

बिगड़ रहा पर्यावरण,भौतिक सुख में लीन।
छनिक भोग में सब लगे,जैसे बिन जल मीन।।

बिगड़ रहा पर्यावरण,दूषित है अब आज।
राम भरोसे सब चले,लेकिन सर पे ताज।।।

बिगड़ रहा पर्यावरण,राही भटके राह।
हाय हाय करते सभी,जो है सदा अथाह।।

बिगड़ रहा पर्यावरण,संकट यह है घोर।
दुखिया हैं कुछ लोग ही,मस्ती करते चोर।।
(स्वरचित मौलिक)
संदीप कुमार सिंह✍️
जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार

Comments & Reviews

Post a comment

Login to post a comment!

Related Articles

शक्ति जब मिले इच्छाओं की, जो चाहें सो हांसिल कर कर लें। आवश्यकताएं अनन्त को भी, एक हद तक प्राप्त कर लें। शक्ति जब मिले इच्छाओं की, आसमा read more >>
Join Us: