Rani Devi 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक साँची धूप काव्य, वक़्त का पहिया, गणतंत्र दिवस 75064 0 Hindi :: हिंदी
आओ, झूमों, नाचो, गाओ देखो रुत है सावन की आई घुँघराली, काली घनघोर बदली जब आसमान में है छाई धरती ने भी झूम, झूम कर विरह प्यास बुझाई सावन की बारिश देखो धरती के आँचल में समाई धरा का उल्लास तुम देखो जब उमड़ उमड़ कर बदली छाई आओ, झूमों, नाचो गाओ देखो रुत है सावन की आई ठुमक ठुमक कर चांदी की सी बूंदें धरा पे बरसे मयूर भी घुमड़ घुमड़ कर नाचे, देख बदली को खूब है हर्षे सर, निर्झर, झीलों और नदी, नालों, में देखो खूब जवानी छाई आओ, झूमों, नाचो, गाओ देखो रुत है सावन की आई प्रकृति भी ओढ़ के हरा आँचल खूब फैलाये रंग बिरंगे फूल भी करके नृत्य सबको रिझाए कोयल की पीहू पीहू मीठी तान देखो सबके मन है सुहाई आओ , झूमों,नाचो, गाओ देखो रुत है सावन की आई इंद्रधनुष की देख छटा को सात रंग मन भाये देख चमक विद्युत की क्षितिज में बालक माँ के आँचल में छिप जाए खेत खलिहानों की हरियाली देखो कैसे लहर लहर लहराई आओ, झूमों , नाचो, गाओ देखो रुत है सावन की आई कानन, कुंजन, विहार, वन, मन में देखो खूब खुशहाली छाई देख छवि झूलों की सावन में हर युवती है मुस्कायी खेतों में भी मक्की के पौधे पे देखो अब मिंजर है आई आओ, झूमों, नाचो, गाओ देखो रुत है सावन की आई
Hindi Lecturer in Government school GSSS Karoa Himachal Pradesh....