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मैं शिक्षक हूँ-मैं कहाँ पढ़ाने बैठा हूँ

DINESH KUMAR KEER 09 May 2023 कविताएँ समाजिक 4081 0 Hindi :: हिंदी

शिक्षक हूँ, पर ये मत सोचो,
बच्चों  को  सिखाने  बैठा हूँ,
मैं   डाक   बनाने  बैठा  हूँ,
मैं  कहाँ  पढ़ाने  बैठा  हूँ ...
कितने SC कितने ST कितने OBC,
कितने जनरल  दाखिले हुए,
कितने आधार बने अब तक,
कितनों  के  खाते  खुले हुए,
बस यहाँ कागजों में उलझा...
निज साख बचाने बैठा हूँ,
मैं  कहाँ  पढ़ाने  बैठा  हूँ ...
कभी SLC कभी PTA,
की मीटिंग बुलाया करता हूँ,
सौ - सौ भांति के रजिस्टर हैं,
उनको   भी   पूरा  करता हूँ,
सरकारी  अभियानों में  मैं...
ड्यूटियाँ  निभाने बैठा हूँ,
मैं  कहाँ  पढ़ाने  बैठा  हूँ ...
लोगों की गिनती करने को,
घर - घर में  मैं ही जाता हूँ,
जब जब चुनाव के दिन आते,
मैं  ही  मतदान  कराता  हूँ,
कभी जनगणना कभी मतगणना...
कभी वोट बनाने बैठा हूँ,
मैं  कहाँ  पढ़ाने  बैठा हूँ ...
रोजाना  न  जाने  कितनी,
यूँ  डाक  बनानी पड़ती है,
बच्चों को पढ़ाने की इच्छा,
मन ही में दबानी पड़ती है,
केवल  शिक्षण  को छोड़ यहाँ...
हर फर्ज निभाने बैठा हूँ,
मैं कहाँ पढ़ाने बैठा हूँ ...
इतने  पर भी  दुनियां वाले,
मेरी   ही  कमी   बताते  हैं,
अच्छे परिणाम न आने पर,
मुझको   दोषी   ठहराते हैं...
बहरे  हैं  लोग  यहाँ ...
मैं  किसे  सुनाने बैठा  हूँ...
मैं कहाँ  पढ़ाने  बैठा  हूँ ...
मैं  नहीं  पढ़ाने  बैठा  हूँ...

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