डॉ शिवम पांडेय 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक Google 20602 0 Hindi :: हिंदी
" मैं पैसा हूँ " अरे ... मैं पैसा हूँ रुपया बनाता हूँ, लोगों को उनकी औकात बताता हूँ , ज़रा तुम उस पुराने गुल्लक को तो तोड़ो जिसमे मैं अशोक के अस्तित्व को कैद कर बैठा हूँ , क्योंकि मैं लोगों को उनकी औकात बताता हूँ , पर मुझे हर कोई अपने पास रखने से करता है इनकार , क्योंकि मैं पैसा हूँ ...., और... तुमको है घमंड मेरी ही लक़बो से , क्योंकि अक्सर देखा है बुजुर्गों की सिर्फ बाते होती है रखना कोई नही चाहता , भले ही तुम्हारी नज़रो के तख्त-ए-आईने में मेरी कोई कीमत नहीं, अरे....मैं अगर कम हो जाऊ तुम्हारे 1 रुपये से तो अपनी कीमत बता दूँगा , लेकिन बाप कभी भी बेटे को अधूरा नहीं छोड़ता , ज़रा मेरी कीमत तुम पूछो उनसे जो मंदिरों के सामने मेरे लिए अपने आँचल फैला देते है , और शाम को मैं रोटी में बदल कर उनका कर्ज चुका देता हूँ , अरे... मैं पैसा हूँ रुपया बना देता हूँ .... रुपया बना देता हूँ _"शिवम"_